Human Rights Violation in Pakistan : इस्लामिक आतंकवाद और कट्टरपंथ का गढ़ बन चुका कंगाल पाकिस्तान आज सिर्फ परमाणु हथियारों का नहीं, बल्कि इंसानियत के खिलाफ जघन्य अपराधों का भी सबसे बड़ा पनाहगाह है। वहां अल्पसंख्यकों, खासकर हिंदुओं के साथ जो हैवानियत होती है, वह अब किसी छिपी हुई सच्चाई नहीं बल्कि खुलेआम किया जा रहा नरसंहार है। सिंध प्रांत जैसे इलाकों से आए दिन ऐसी रूह कंपा देने वाली घटनाएं सामने आती हैं, जहाँ नाबालिग हिंदू बेटियों को अगवा किया जाता है, जबरन इस्लाम में धर्मांतरित किया जाता है और फिर उनसे उम्र में दोगुने-तीगुने मुस्लिम पुरुषों से निकाह करवा दिया जाता है — यह सब पाकिस्तान में आज 'सामान्य' बन चुका है।
मानवाधिकार उल्लंघन से सम्बंधित इस कड़ी में पाकिस्तान के सिंध प्रांत के मीरपुर खास जिले के कोट ग़ुलाम मोहम्मद इलाके से एक और 14 वर्षीय हिंदू लड़की के अपहरण, जबरन इस्लाम में धर्मांतरण और फिर एक मुस्लिम युवक बिलाल खांज़ादा से निकाह की घटना सामने आई है। हालाँकि यह कोई पहली घटना नहीं है। बल्कि यह घटना एक बार फिर से पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय, विशेष रूप से महिलाओं और नाबालिग लड़कियों के साथ हो रहे भयावह अत्याचारों को उजागर करता है।
हर रोज़ की त्रासदी: अपहरण, धर्मांतरण और जबरन निकाह
पाकिस्तान, विशेष रूप से सिंध प्रांत, जो कि हिंदू अल्पसंख्यकों की एक बड़ी आबादी को समेटे हुए है, वहाँ पिछले कुछ दशकों में हजारों ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जहां नाबालिग हिंदू लड़कियों को अगवा किया गया, उन्हें इस्लाम में धर्मांतरित कराया गया और फिर जबरन निकाह करवा दिया गया — वह भी अक्सर उनसे कहीं ज्यादा उम्र के पुरुषों के साथ।
14 साल की जिस लड़की की कहानी हम लिख रहे हैं, उसका अपहरण खुलेआम किया गया। परिजनों द्वारा एफआईआर दर्ज कराने के बावजूद न पुलिस ने कोई ठोस कार्रवाई की, न अदालत ने कोई त्वरित न्याय दिया। उल्टा, 'स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन और शादी' का झूठा कागज बनाकर पूरे मामले को दबा दिया गया।
मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन
इस तरह की घटनाएं केवल धार्मिक उत्पीड़न नहीं हैं, बल्कि यह बाल अधिकारों और मानवाधिकारों का स्पष्ट और संगीन उल्लंघन हैं। हालाँकि इससे भी ज्यादा शर्मनाक बात यह है कि हर बात में मानवाधिकार की दुहाई देने वाले वैश्विक संस्थान इन घटनाओं को देखते हुए भी आँखे बंद कर लेते हैं।
* UN कन्वेंशन ऑन चाइल्ड राइट्स के तहत, 18 वर्ष से कम आयु की किसी भी लड़की की शादी, बिना उसकी स्वतंत्र सहमति के, अंतरराष्ट्रीय कानूनों के विरुद्ध है।
* इसके अलावा, जबरन धर्मांतरण UN ह्यूमन राइट्स चार्टर के अनुच्छेद 18 के खिलाफ है, जो धर्म की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
न्याय व्यवस्था की नाकामी और राज्य प्रायोजित चुप्पी
पाकिस्तानी अदालतें, मौलवियों के हलफनामों के आधार पर इन लड़कियों को 'स्वेच्छा से मुस्लिम बनने वाली' घोषित कर देती हैं। कोई नहीं पूछता कि 14 साल की बच्ची में इतनी समझ कैसे आ गई? क्यों उसके माता-पिता की बात नहीं सुनी जाती? क्यों हर बार 'बिलाल खांज़ादा' जैसे लोगों को राज्य की चुप्पी का लाभ मिलता है?
पारंपरिक और सांस्कृतिक नरसंहार
इन घटनाओं से सिर्फ एक व्यक्ति या परिवार नहीं टूटता, बल्कि पूरे हिंदू समुदाय के भीतर भय, असुरक्षा और असहायता की भावना गहराती है। धीरे-धीरे यह एक सांस्कृतिक और धार्मिक नरसंहार (Cultural Genocide) बनता जा रहा है, जहां अल्पसंख्यकों को उनकी जड़ों से उखाड़ा जा रहा है। इन मासूम बच्चियों का बचपन, शिक्षा, स्वप्न और भविष्य – सब कुछ एक झटके में छीन लिया जाता है। वे ना तो अपने घर लौट पाती हैं, ना अपनी पहचान।
पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर अत्याचार
क्षेत्र | संख्या | स्रोत |
जनसंख्या व वितरण | 2017 की जनगणना के अनुसार पाकिस्तान में हिंदुओं की संख्या लगभग 44 लाख (2.1 %) है; इन-में से 94 % सिंध में रहते हैं, जहाँ कई ज़िलों (उमरकोट, थरपारकर, मीरपुरखास आदि) में उनकी आबादी 20-50 % तक है। | en.wikipedia.org |
जबरन धर्मान्तरण व बाल-विवाह | नागरिक-समूह South Asia Partnership–Pakistan का आकलन—हर साल ≈ 1000 हिंदू/ईसाई नाबालिग लड़कियाँ अग़वा कर इस्लाम कबूल करवाकर निकाह कराया जाता है; मुख्य ‘हॉट-स्पॉट’ सिंध के उमरकोट, थरपारकर, मीरपुरखास, घोटकी इत्यादि हैं। | thehindu.com |
| 2023 में Centre for Social Justice के अनुसार 109 दर्ज केस (80 हिंदू, 13 ईसाई) ही पुलिस रिकॉर्ड में आए; असली संख्या इससे कहीं अधिक मानी जाती है। | csw.org.uk |
अदालत-पुलिस की विफलता | अपहरणकर्ता अक्सर “स्वेच्छा से इस्लाम अपनाने” का हलफ़नामा जमा कराते हैं; निचली अदालतें नाबालिग उम्र, बर्थ-सर्टिफ़िकेट या माता-पिता की अर्जी पर ध्यान नहीं देतीं। | observerdiplomat.com |
क़ानून-व्यवस्था व विधायी प्रयास | सिंध विधानसभा ने 2016 में ऐंटी-फोर्स्ड-कन्वर्ज़न बिल पारित किया था, पर इस्लामी दलों के दबाव से गवर्नर ने दस्तख़त नहीं किए; 2019 व 2024-25 में कोशिशें फिर नाकाम रहीं। | tribune.com.pk |
ब्लास्फ़ेमी क़ानून का दुरुपयोग | HRCP की ‘Under Siege’ (2025) रिपोर्ट: अक्तूबर 2024 तक 750 से अधिक लोग बहुत-से हिंदू धारा 295-A/B/C के तहत जेलों में थे; सोशल-मीडिया अफ़वाहों से भीड़-हिंसा के मामले बढ़े। | hrcp-web.org |
प्रवास (Migration) | HRCP की फ़ैक्ट-फ़ाइंडिंग स्टडी ‘Exodus: Is the Hindu Community Leaving Sindh?’ (जनवरी 2025)—धर्म-आधारित हिंसा, अपहरण- फिरौती, जलवायु-संकट व आर्थिक तंगी ने हज़ारों परिवारों को कराची या भारत पलायन पर मजबूर किया। | hrcp-web.org dawn.com |
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया | संयुक्त राष्ट्र के 12 एक्सपर्ट्स (मार्च 2025) ने पाक सरकार से कड़े क़दम उठाने की अपील की; UN-ब्रीफ़िंग में भी सालाना “कई सौ” जबरन धर्मान्तरण के मामलों पर चिंता। | voanews.com |
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अंतरराष्ट्रीय समुदाय की खामोशी
सबसे दुखद पहलू यह है कि इन अत्याचारों पर संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, यूरोपीय संघ, और मानवाधिकार संगठन केवल बयान तक सीमित रहते हैं। जब भारत में कोई स्थानीय घटना होती है तो पूरी दुनिया “Minority Rights” चिल्लाने लगती है, लेकिन पाकिस्तान में रोज़ ऐसी घटनाएं घटने पर यह संस्थाएं मौन हो जाती हैं। इन संगठनों का यह रवैया कहीं न कहीं पाकिस्तान जैसे और वहां पलने वाले कट्टरपंथियों के मनोबल को बढ़ाती है। जिसके कारण वे आतंकवाद और हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा को अंजाम देते हैं।
हालाँकि UNSC में भारत अक्सर पाकिस्तान के इन कुकृत्यों को दुनिया के सामने उजागर करता आया है। UNSC की मंच से भारत हमेशा पाकिस्तान को नसीहत भी देता है कि वे पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करे। लेकिन पाकिस्तान अपनी नापाक हरकतों से कहाँ बाज आने वाला। आज पाकिस्तान में जो हो रहा है, वह सिर्फ एक लड़की की कहानी नहीं, बल्कि हज़ारों साल पुरानी हिंदू संस्कृति पर प्रहार है। जो लोग कहते हैं कि "ये पाकिस्तान का आंतरिक मामला है", उन्हें जानना चाहिए कि मानवाधिकार उल्लंघन कभी भी केवल किसी देश की सीमा में कैद नहीं रहता।