9 जून 1999 : जब बटालिक सेक्टर में लहराया तिरंगा ; कारगिल युद्ध की एक वीरगाथा

    09-जून-2025
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Kargil war history 9 june 1999
 
25 साल पहले आज ही के दिन भारतीय सेना ने कारगिल की दुर्गम चोटियों पर एक ऐतिहासिक विजय हासिल की थी। 9 जून 1999 को भारतीय जवानों ने बटालिक सेक्टर की दो प्रमुख चौकियों को पाकिस्तानी कब्जे से मुक्त कर वहां तिरंगा फहराया था। यह दिन कारगिल युद्ध की रणनीतिक दिशा तय करने वाला क्षण बना।
 
 
युद्ध की शुरुआत :
 
 
कारगिल युद्ध की चिंगारी भड़की 3 मई 1999 को, जब बटालिक सेक्टर के गारकॉन गांव के एक आम चरवाहे ताशी नामग्याल ने कुछ अनजान गतिविधियां देखीं। ऊंचाई वाले इलाके में अपनी याक ढूंढते हुए ताशी की नजर काले कपड़े पहने, हथियारबंद लोगों पर पड़ी जो चट्टानों के पीछे ठिकाने बना रहे थे। उसने तत्काल इसकी सूचना भारतीय सेना को दी। यह जानकारी कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठ की पहली ठोस सूचना साबित हुई।
 
 
कैप्टन सौरभ कालिया और उनके साथियों का बलिदान
 
 
14 मई को, घुसपैठ की जांच के लिए 4 जाट रेजिमेंट के कैप्टन सौरभ कालिया अपने पांच साथियों के साथ काक्सर सेक्टर के बजरंग पोस्ट की ओर रवाना हुए। अगले दिन भारी बर्फबारी के बीच जैसे ही वह पोस्ट के करीब पहुंचे, घात लगाए पाकिस्तानी सैनिकों ने हमला बोल दिया। जवानों ने बहादुरी से मुकाबला किया, परंतु गोलियां खत्म हो जाने के बाद वे दुश्मनों के हाथों बंदी बना लिए गए। पाकिस्तान ने उन्हें बेरहमी से यातनाएं दीं और अंतरराष्ट्रीय कानूनों की धज्जियां उड़ाकर उनकी हत्या कर दी।
 
 
कैप्टन अमित की वीरता और बलिदान
 
 
15 मई को जब जवान वापस नहीं लौटे, तब कैप्टन अमित भंडारी 30 जवानों की टुकड़ी लेकर बजरंग पोस्ट पहुंचे। वहां उन्होंने घात लगाए पाकिस्तानी दस्तों की मौजूदगी को भांपते हुए अपने साथियों को सुरक्षित स्थानों से मोर्चा संभालने का आदेश दिया ताकि पीछे मुख्यालय को सूचना दी जा सके। लगातार गोलीबारी का जवाब देते हुए 17 मई को कैप्टन अमित वीरगति को प्राप्त हुए। यही वह समय था जब घुसपैठ की गंभीरता को लेकर सेना की नजरें खुलीं और 25 मई को इसकी आधिकारिक पुष्टि हुई कि यह कोई उग्रवादी घुसपैठ नहीं, बल्कि पाकिस्तानी सेना की संगठित योजना थी।
 
 
ऑपरेशन विजय और वायुसेना की एंट्री
 
 
26 मई 1999 को भारतीय वायुसेना को पहली बार इस युद्ध में शामिल किया गया। रॉ के प्रमुख अरविंद दवे द्वारा सेनाध्यक्ष वी.पी. मलिक को दिए गए टेप ने स्पष्ट कर दिया कि यह हमला पाकिस्तानी सेना के जनरल स्टाफ प्रमुख मोहम्मद अजीज और सेनाध्यक्ष परवेज मुशर्रफ की आपसी योजना का हिस्सा था। इसी दिन मिग-27 और मिग-29 विमानों ने पाक ठिकानों पर गोलाबारी शुरू की। इसी के साथ ऑपरेशन सफेद सागर की शुरुआत हुई।
 
 
स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा और फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता की कहानी
 
 
27 मई को टोही मिशन पर गए मिग-27 में सवार फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता का विमान क्रैश हुआ। साथी को बचाने निकले स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा का मिग-21 भी दुश्मन की गोलीबारी का शिकार हो गया। नचिकेता बंदी बनाए गए, लेकिन साहस के साथ उन्होंने दुश्मन को कोई जानकारी नहीं दी और 8 दिन बाद रिहा हुए। वहीं अजय आहूजा को जिंदा पकड़े जाने के बाद पाकिस्तानियों ने क्रूरतापूर्वक मार डाला। 29 मई को उनका पार्थिव शरीर सौंपा गया, जिससे पाकिस्तान की बर्बरता उजागर हुई।
 
 
9 जून 1999 : जब दुश्मनों को खदेड़ कर लहराया तिरंगा
 
 
भारी नुकसान झेलने के बाद भारतीय सेना ने बटालिक सेक्टर में एक निर्णायक हमला किया। 6 जून को शुरू हुए इस ऑपरेशन का परिणाम 9 जून को सामने आया, जब हमारी सेना ने दो प्रमुख चौकियों को दुश्मनों से खाली करवा कर वहां तिरंगा फहराया। यह युद्ध के मोर्चे पर भारत की पहली बड़ी रणनीतिक सफलता थी।
 
 
9 जून की सफलता के बाद भारतीय सेना ने तेजी से मोर्चा संभाला और एक-एक कर द्रास, तोलोलिंग, टाइगर हिल जैसे क्षेत्रों में भी पाकिस्तानियों को खदेड़ दिया। 26 जुलाई 1999 को ऑपरेशन विजय की औपचारिक समाप्ति के साथ कारगिल युद्ध में भारत ने निर्णायक जीत दर्ज की। यह युद्ध भारत की सैन्य, खुफिया और कूटनीतिक शक्ति का प्रतीक बन गया।
 
 
आज 25 वर्षों बाद भी 9 जून का दिन सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि एक गर्व और श्रद्धा का दिन है। बटालिक की ऊंची पहाड़ियों पर दुश्मन को खदेड़कर फहराया गया तिरंगा आज भी हर भारतीय के मन में राष्ट्रभक्ति की लौ जगाता है।