
भारत की सामरिक शक्ति एक नए युग में प्रवेश कर चुकी है। DRDO ने वो कर दिखाया है जिसकी गूंज हिंद महासागर से लेकर हिन्दकुश तक सुनाई दे रही है। भारत की पहली पनडुब्बी से प्रक्षेपित की जाने वाली हाइपरसोनिक इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (SLBM-ICBM) K-6 अब तैयार है। इस मिसाइल की ताकत और तकनीक न केवल भारत की परमाणु त्रिकोणीय क्षमता को पूर्ण बनाती है, बल्कि यह देश की समुद्री सुरक्षा को दुश्मनों के लिए एक अजेय दीवार बना देती है। हाल ही में DRDO द्वारा आयोजित एक सेमिनार में इस मिसाइल की विशेषताएं सार्वजनिक की गईं, जिसने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत आने वाले वर्षों में रक्षा तकनीक की वैश्विक रेस में केवल शामिल नहीं, बल्कि अग्रणी होगा।
क्या है K-6 मिसाइल?
K-6 एक अत्याधुनिक, तीन-चरणीय ठोस ईंधन से संचालित हाइपरसोनिक बैलिस्टिक मिसाइल है, जिसे विशेष रूप से भारत की अगली पीढ़ी की परमाणु पनडुब्बियों से लॉन्च करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसकी स्पीड और रेंज इसे वैश्विक स्तर पर सबसे घातक समुद्री मिसाइलों की श्रेणी में ला खड़ा करती हैं।
प्रमुख विशेषताएँ:
विशेषता | विवरण |
रेंज | लगभग 8,000 किलोमीटर |
गति | 7.5 मैक (~9,200 किमी/घंटा) |
प्रणाली | पनडुब्बी से प्रक्षेपण (SLBM) |
लंबाई | लगभग 12 मीटर |
व्यास | 2 मीटर |
पेलोड क्षमता | 2–3 टन (MIRV तकनीक सहित) |
MIRV: एक मिसाइल, कई विनाश
K-6 को और अधिक खतरनाक बनाती है इसकी MIRV (Multiple Independently Targetable Re-entry Vehicles) तकनीक। इसका मतलब है कि एक ही मिसाइल से कई परमाणु हथियार अलग-अलग दिशाओं में अलग-अलग लक्ष्यों को भेद सकते हैं। यह तकनीक दुश्मन के किसी भी मिसाइल डिफेंस सिस्टम को भ्रमित करने और उसे निष्क्रिय करने में अत्यधिक प्रभावी है। सिर्फ एक प्रक्षेपण, लेकिन विनाश कई दिशाओं से यही है MIRV की ताकत।
K-6 कहां से होगी लॉन्च?
K-6 को विशेष रूप से S-5 क्लास की परमाणु पनडुब्बियों के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो वर्तमान INS अरिहंत और INS अरिघात की तुलना में कहीं अधिक शक्तिशाली और विशाल होंगी। INS अरिघात को 2024 में कमीशन किया गया था, जबकि INS अरिहंत पहले से ही सक्रिय सेवा में है। S-5 पनडुब्बियां INS अरिहंत से लगभग दोगुनी टन क्षमता की होंगी, जिनमें लंबी दूरी की मिसाइलों के लिए अधिक स्लॉट और बेहतर साइलेंसिंग टेक्नोलॉजी होगी। इनका निर्माण विशाखापत्तनम के अत्याधुनिक शिपयार्ड में हो रहा है।
रणनीतिक बढ़त: अब वैश्विक हाइपरसोनिक क्लब में भारत
K-6 मिसाइल भारत को उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देती है जिनके पास समुद्र से दागी जाने वाली हाइपरसोनिक और MIRV-सक्षम मिसाइलें हैं। यह क्लब अभी तक केवल अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन तक सीमित था। भारत की न्यूक्लियर ट्रायड — भूमि (Agni श्रृंखला), वायु (Su-30MKI, Rafale), और अब समुद्र (K-4, K-5 और अब K-6) अब पूर्ण और विश्वसनीय हो चुकी है।
चीन और पाकिस्तान के लिए रणनीतिक संदेश
K-6 की रेंज और स्पीड इसे पाकिस्तान की संपूर्ण भू-सीमा और चीन के ग्वांगझू, बीजिंग, चेंगदू जैसे रणनीतिक शहरों तक पहुंचने में सक्षम बनाती है। इसकी हाइपरसोनिक गति और मल्टी-वॉरहेड क्षमता दुश्मन की किसी भी एयर डिफेंस को नाकाम करने में सक्षम है। यह मिसाइल First Strike Neutralization और Second Strike Retaliation — दोनों मोर्चों पर भारत को अजेय बना देती है।
भारत केवल K-6 पर ही नहीं रुका है, बल्कि यह एक व्यापक रक्षा टेक्नोलॉजी क्रांति की शुरुआत है। DRDO आने वाले वर्षों में जिन परियोजनाओं पर कार्य कर रहा है, उनमें शामिल हैं:
अगली पीढ़ी की BrahMos हाइपरसोनिक मिसाइल (Mach 5+)
लंबी दूरी की एयर डिफेंस प्रणाली
AI-सक्षम स्वार्म ड्रोन व लेजर हथियार प्रणाली
Quantum Communication & Satellite Surveillance Capabilities
राष्ट्रनिर्माण का ‘साइलेंट गार्जियन’
K-6 केवल एक हथियार नहीं, यह भारत की रणनीतिक संप्रभुता, तकनीकी आत्मनिर्भरता और सामरिक विश्वास का प्रतीक है। यह मिसाइल समुद्र की गहराइयों से निकलकर भारत की सुरक्षा का ‘अदृश्य कवच’ बनती जा रही है। जब देश की सीमाएं सागर में फैली हों, तो उनकी रक्षा केवल सेनाओं से नहीं, बल्कि दूरगामी दृष्टि, अत्याधुनिक तकनीक और दृढ़ संकल्प से होती है — K-6 उसी का नाम है।