#RememberingOurKargilHeroes : शरीर में लगीं थी 15 गोलियां फिर भी पाकिस्तानी सैनिकों को चटाया धूल ; कारगिल के परमवीर सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव की अमर शौर्यगाथा

महज 19 वर्ष की आयु में परमवीर चक्र से हुए थे सम्मानित

    04-जुलाई-2025
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Yogendra Singh Yadav
 
 
Kargil War Story : सूबेदार मेजर (सूबे मेजर) योगेंद्र सिंह यादव का जन्म 10 मई 1980 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के औरंगाबाद अहीर गांव में हुआ। मात्र 16 वर्ष की आयु में, वर्ष 1996 में, उन्होंने भारतीय सेना में शामिल होकर अपने सैन्य जीवन की शुरुआत की। योगेंद्र यादव के पिता भी भारतीय सेना में सेवा दे चुके थे और उन्होंने 1965 व 1971 के भारत-पाक युद्धों में कुमाऊं रेजिमेंट के साथ अद्वितीय वीरता दिखाई थी।
 
 
टाइगर हिल के तीन बंकरों को मुक्त कराने की चुनौती
 
 
सेना में भर्ती होने के कुछ ही वर्षों बाद योगेंद्र को वह अवसर मिला, जिसने उन्हें इतिहास के पन्नों में अमर कर दिया। 1999 में पाकिस्तान द्वारा कारगिल की ऊंची चोटियों पर कब्ज़ा कर युद्ध छेड़ दिया गया। इस युद्ध के दौरान ग्रेनेडियर्स की 18वीं बटालियन में तैनात योगेंद्र सिंह यादव को टाइगर हिल की सबसे रणनीतिक 3 बंकरों को दुश्मनों से मुक्त कराने की जिम्मेदारी दी गई।
 
 
90 डिग्री की चढ़ाई  
 
 
4 जुलाई 1999, योगेंद्र अपनी कमांडो प्लाटून के साथ करीब 90 डिग्री की सीधी, खड़ी चढ़ाई पर चढ़ने लगे। यह मार्ग अत्यंत जोखिमभरा था लेकिन केवल इसी रास्ते से दुश्मन को चकमा दिया जा सकता था। कुछ ही दूरी तय की थी कि पाकिस्तानी सैनिकों ने भारी गोलीबारी शुरू कर दी, जिससे कई भारतीय जवान घायल हो गए और अस्थायी रूप से पीछे हटना पड़ा।
 
 
 
 
 
योजना के तहत हमला  
 
 
5 जुलाई को एक बार फिर 18 ग्रेनेडियर्स के 25 जवानों ने दुर्गम चोटी की ओर चढ़ाई शुरू की। इस बार भी उन्हें पाकिस्तानी सेना ने देख लिया और भीषण गोलीबारी हुई। कई घंटे तक चले संघर्ष के बाद भारतीय सेना ने एक रणनीतिक योजना के तहत कुछ सैनिकों को पीछे हटने का आदेश दिया, जिससे दुश्मन को लगा कि भारतीय सेना पीछे हट रही है।
 
 
इसी भ्रम के बीच योगेंद्र और उनकी टुकड़ी के सात सैनिक वहीं छिपे रहे। जैसे ही पाकिस्तानी सैनिक यह पुष्टि करने नीचे आए कि कोई जीवित तो नहीं बचा तभी योगेंद्र की टुकड़ी ने उन पर अचानक हमला बोल दिया। कुछ पाकिस्तानी भाग निकले और ऊपर जाकर भारतीय मौजूदगी की सूचना दे दी।
 

Yogendra Singh Yadav
 
 
15 गोलियां खाने के बाद भी मोर्चा नहीं छोड़ा
 
 
सुबह होते-होते योगेंद्र और उनके साथी टाइगर हिल की चोटी के पास पहुंच चुके थे, लेकिन तभी पाकिस्तानियों ने चारों ओर से घेरकर उन पर हमला कर दिया। इस हमले में योगेंद्र के सभी साथी वीरगति को प्राप्त हो गए और योगेंद्र के शरीर में 15 गोलियां लगीं। वे गंभीर रूप से घायल हो गए थे, लेकिन उनकी सांसें चल रही थीं।
 
 
Yogendra Singh Yadav
 
 
जब पाकिस्तानी सैनिकों को लगा कि वह मर चुके हैं, तभी योगेंद्र ने जेब से ग्रेनेड निकालकर दुश्मन पर फेंका इस हमले में कई पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। इसके बाद उन्होंने पास पड़ी रायफल उठाई और बचे हुए दुश्मनों को भी ढेर कर दिया। गंभीर रूप से घायल योगेंद्र एक नाले में गिर पड़े और बहते हुए नीचे पहुंच गए, जिससे उनकी जान बच गई। भारतीय सेना ने उन्हें खोजकर तत्काल अस्पताल पहुंचाया। इलाज के बाद वे धीरे-धीरे स्वस्थ हुए।
 
 
परमवीर चक्र से सम्मानित
 
 
टाइगर हिल पर विजय और अद्वितीय साहस के लिए योगेंद्र सिंह यादव को भारत के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार 'परमवीर चक्र' से सम्मानित किया गया। वह सिर्फ 19 वर्ष की उम्र में इस सम्मान को पाने वाले सबसे युवा सैनिक बने।
 
 
वर्तमान में भी वे भारतीय सेना से जुड़े हुए हैं और सेवा दे रहे हैं। कुछ वर्ष पूर्व उन्हें 'Honorary Lieutenant' की उपाधि प्रदान की गई। सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव न केवल कारगिल युद्ध के एक नायक हैं, बल्कि भारत की सैन्य परंपरा, साहस और बलिदान के प्रतीक भी हैं। उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है।
 
 
जय हिंद.......