"70 साल का छलावा… अब सिर्फ़ सच!"
जब बात जम्मू-कश्मीर की होती है, तो कई लोगों के ज़हन में एक ही सवाल उठता है- "आख़िर अनुच्छेद 370 था क्या?"
एक राज्य, दो संविधान?
एक देश, दो निशान?
क्या 370 भारतीय संविधान का एक स्पेशल प्रावधान था, या एक षड्यंत्र जो भारत की आत्मा को सालों तक बाँधे रहा?
5 अगस्त 2019 को एक ऐतिहासिक निर्णय ने न केवल इन सवालों का जवाब दिया, बल्कि दशकों से चले आ रहे भ्रम, झूठे नैरेटिव और अर्धसत्य को भी उजागर कर दिया। संसद के इस फैसले पर 11 दिसंबर 2023 को देश के सर्वोच्च न्यायलय की संवैधानिक खंडपीठ ने भी एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए अपनी मुहर लगा दी।
लेकिन क्या हम सच में जानते हैं कि इससे पहले 370 ने देश को क्या-क्या खोने पर मजबूर किया? और कैसे कुछ लोगों ने इसे अपने राजनीतिक एजेंडे का हथियार बना लिया? इस 5 अगस्त के मौके पर इस रिपोर्ट के जरिये हमने इन्हीं बिंदुओं को समेटने और समझाने का प्रयास किया है।
"अनुच्छेद 370: भ्रम बनाम वास्तविकता" के तथ्यों को समेटे यह रिपोर्ट न केवल ऐतिहासिक तथ्यों को सामने लाती है, बल्कि इस पूरे अध्याय को वस्तुपरक रूप से समझने का एक प्रयास है, बिना किसी झूठे प्रचार के, बिना किसी भावनात्मक दोहन के।
यह रिपोर्ट ओरिजनल डॉक्यूमेंट्स और प्राथमिक स्रोतों के तथ्यों पर आधारित है। जो उन सवालों का जवाब देती है जिनसे वर्षों तक जनता को भ्रमित किया गया:
• क्या जम्मू-कश्मीर का अधिमिलन अधूरा था?
• कैसे नेहरू-शेख गठजोड़ ने एक राष्ट्र के संविधान को बंधक बना दिया?
• कैसे 370 ने महिलाओं, दलितों, ओबीसी और शरणार्थियों को उनके अधिकारों से वंचित रखा?
• और अंततः 5 अगस्त 2019 को क्या बदला, क्यों बदला, और कैसे बदला?

यह सिर्फ एक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक पड़ताल है, उस घाव की जो अब भर चुका है,
वो षड़यंत्र की जो अब उजागर हो चुकी है, और उस भविष्य की जो अब समानता, न्याय और विकास की ओर अग्रसर है। आईये, सच्चाई के आईने में देखें... अनुच्छेद 370 का असली चेहरा।

📚 अध्याय सूची
1. भारत विरोधी वैचारिक विमर्श का निर्माण और वास्तविकता
2. नेहरू-शेख गठजोड़ और सत्ता की सांठगांठ
3. अनुच्छेद 370 का राजनीतिक दुरुपयोग
4. प्रजा परिषद आंदोलन और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान
5. अनुच्छेद 370 के सामाजिक-राजनीतिक दुष्परिणाम
6. अनुच्छेद 370 की समाप्ति- संवैधानिक और शांतिपूर्ण प्रक्रिया
7. नए जम्मू-कश्मीर की ओर- समान अधिकारों की पुनर्स्थापना
8. परिसीमन, निर्वाचन सुधार और लोकतांत्रिक पुनर्गठन
9. अनुच्छेद 370 के बाद सामाजिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण
10. निष्कर्ष- एक राष्ट्र, एक संविधान, एक भविष्य
अध्याय 1: भारत विरोधी वैचारिक विमर्श का निर्माण और वास्तविकता
विरोधियों द्वारा खड़ा किया गया विमर्श
o विरोधियों द्वारा यह विमर्श स्थापित किया गया था कि जम्मू कश्मीर देश के अन्य राज्यों की तरह नहीं है।
o यह भी प्रचारित किया गया कि जम्मू कश्मीर को अनुच्छेद 370 के अंतर्गत विशेष दर्जा प्राप्त है।
o एक और विमर्श था कि कश्मीर का मुस्लिम भारतीय सरकार और सेना के अत्याचार से पीड़ित है।
o अधिमिलन (accession) को अपूर्ण और शर्त्तीय बताया गया।
o यह भी कहा गया कि अधिमिलन मात्र तीन विषयों को लेकर हुआ।
o यह भ्रम भी फैलाया गया कि जम्मू कश्मीर का अन्य राज्यों की तरह अधिमिलन नहीं हुआ है।
o एक और दावा था कि महाराजा हरि सिंह अधिमिलन नहीं करना चाहते थे, वे स्वतंत्र रहना चाहते थे।

1930 में लंदन में ब्रिटिश शासन के साथ गोलमेज सम्मेलन में प्रिंसली स्टेट्स का प्रतिनिधित्व करते हुए, सभी रियासतों को अखिल भारत संघ में विलय का सुझाव देते हुए महाराजा हरि सिंह
• जम्मू-कश्मीर के अधिमिलन को लेकर फैलाई गई भ्रांतियाँ
o भ्रम 1: जम्मू कश्मीर का अधिमिलन अधूरा है, सशर्त था।
वास्तविकता: यह धारणा तथ्यों के विपरीत है। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक खंडपीठ के फैसले में इसे विस्तार से स्पष्ट किया गया है, जिसके अनुसार-
• जम्मू कश्मीर का भारत के साथ पूर्ण और अटूट एकीकरण (Integration) हो चुका था।
• भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370, अनुच्छेद 1 के साथ मिलकर, यह स्पष्ट करता है कि जम्मू-कश्मीर का भारत राष्ट्र के एक हिस्से के रूप में एकीकरण पूरी तरह से हो चुका था। अनुच्छेद 370 की कोई भी व्याख्या यह नहीं कह सकती कि जम्मू-कश्मीर का भारत के साथ एकीकरण अस्थायी था।
• संप्रभुता का पूर्ण समर्पण: महाराजा हरि सिंह द्वारा 'अधिमिलन पत्र' (Instrument of Accession - IoA) पर हस्ताक्षर करने के साथ संप्रभुता का समर्पण हो गया था।
• इसके बाद, युवराज करण सिंह द्वारा नवंबर 1949 में 'घोषणा' (Proclamation) जारी करने से संप्रभुता का पूर्ण समर्पण हो गया था।
• युवराज करण सिंह की इस 'घोषणा' (Proclamation) ने भारतीय संविधान को जम्मू-कश्मीर पर बिना किसी शर्त के लागू होने की पुष्टि की। इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि भारतीय संविधान राज्य के अन्य सभी संवैधानिक प्रावधानों को 'अतिष्ठित' (supersede) करेगा और उन्हें निरस्त भी करेगा।
• अधिमिलन पत्र पर हस्ताक्षर करने और 25 नवंबर 1949 की 'घोषणा' (Proclamation) जारी करने के बाद, जम्मू-कश्मीर राज्य के पास संप्रभुता का कोई भी तत्व शेष नहीं रहा। बाद में जम्मू-कश्मीर के संविधान में भी संप्रभुता का कोई उल्लेख नहीं था।
• सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में स्पष्ट किया कि राज्य की उस समय की विशेष परिस्थितियों (जैसे युद्ध की स्थिति और राज्य में संविधान सभा की अनुपस्थिति) के कारण आर्टिकल 370, एक अंतरिम और अस्थायी व्यवस्था के रूप में लाया गया था। इसका उद्देश्य राज्य को धीरे-धीरे अन्य राज्यों के समान लाना था। यह प्रावधान एक चरणबद्ध एकीकरण की प्रक्रिया के लिए था, न कि अधूरे अधिमिलन के कारण।
(In Re.: Article 370 of the Constitution: Para 64 of Justice SK Kaul’s Judgment, pg. 89 of 121)
आर्टिकल 370 पर ऐतिहासिक निर्णय सुनाने वाले सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक खंडपीठ
• जम्मू कश्मीर भारत का एक अविभाज्य अंग है: भारत के संविधान संविधान के अनुसार, जम्मू-कश्मीर भारत संघ का एक अभिन्न अंग है। जम्मू-कश्मीर के लोग अन्य राज्यों के लोगों से भिन्न तरीके से संप्रभुता का प्रयोग नहीं करते हैं। स्पष्ट है कि जम्मू-कश्मीर का भारत के साथ अधिमिलन पूर्ण और अंतिम था, और यह किसी शर्त पर आधारित नहीं था।

26 अक्टूबर 1947 को जम्मू कश्मीर का अधिमिलन पत्र
o भ्रम 2: "जम्मू-कश्मीर का अधिमिलन (इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन) केवल तीन विषयों-विदेश, रक्षा और संचार तक सीमित था।"
वास्तविकता: यह दावा कि जम्मू-कश्मीर का अधिमिलन (Instrument of Accession - IoA) केवल तीन विषयों (विदेश, रक्षा और संचार) तक सीमित था, पूरी तरह से गलत और भ्रामक है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक खंडपीठ के नवंबर 2023 के निर्णय में इस बात को स्पष्ट रूप से खारिज किया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार-
• अधिमिलन पत्र (IoA) केवल एक प्रारंभिक कदम था:
महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर 1947 को अधिमिलन पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। इस पत्र में यह स्पष्ट था कि भारत के गवर्नर जनरल, डोमिनियन विधायिका, फेडरल कोर्ट और अन्य डोमिनियन प्राधिकरण जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में उन कार्यों का निर्वहन करेंगे जो उन्हें भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत सौंपे जा सकते हैं।
(In Re.: Article 370 of the Constitution: Para 64 of Justice SK Kaul’s Judgment, pg. 89 of 121)
o हालाँकि, यह अधिमिलन पत्र भविष्य के संवैधानिक एकीकरण की नींव था, न कि अंतिम सीमा। इसमें यह प्रावधान था कि भारतीय संसद को IoA में निर्दिष्ट मामलों के अलावा, राज्य सरकार की सहमति से अतिरिक्त मामलों पर भी कानून बनाने का अधिकार होगा। (In Re.: Article 370 of the Constitution: pg. 94)
o सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी नोट किया कि नए संविधान में 'अधिमिलन के दस्तावेज़' (instruments of accession) अतीत की बात हो जाएंगे क्योंकि राज्यों को गणराज्य की इकाइयों के रूप में संविधान में ही शामिल किया गया है।
(In Re.: Article 370 of the Constitution: pg.160)
• अनुच्छेद 370 एक अस्थायी और संक्रमणकालीन प्रावधान था:
o अनुच्छेद 370 को जम्मू-कश्मीर के लिए एक अस्थायी और अंतरिम व्यवस्था के रूप में लाया गया था।

o इसके 2 मुख्य उद्देश्य थे: पहला, राज्य में एक संविधान सभा के गठन तक एक अंतरिम व्यवस्था प्रदान करना, और दूसरा, उस समय राज्य में व्याप्त युद्ध जैसी विशेष परिस्थितियों को देखते हुए एक अस्थायी समाधान प्रदान करना।
o यह प्रावधान धीरे-धीरे राज्य को अन्य राज्यों के बराबर लाने के लिए था, ताकि समय के साथ भारतीय संसद की कानून बनाने की शक्ति और भारतीय संविधान के विभिन्न प्रावधान राज्य पर लागू हो सकें। यह चरणबद्ध एकीकरण की प्रक्रिया को दर्शाता था।
• संप्रभुता का पूर्ण समर्पण 'घोषणा' (Proclamation) के साथ हुआ था:
o जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता का आंशिक समर्पण IoA पर हस्ताक्षर के साथ हुआ था।
o लेकिन, युवराज करण सिंह द्वारा नवंबर 1949 में जारी की गई 'घोषणा' (Proclamation) के साथ संप्रभुता का पूर्ण समर्पण हो गया।
o इस घोषणा ने भारतीय संविधान को जम्मू-कश्मीर पर बिना किसी शर्त के लागू होने की पुष्टि की। इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि भारतीय संविधान राज्य के अन्य सभी संवैधानिक प्रावधानों को 'अतिष्ठित' (supersede) करेगा और उन्हें निरस्त भी करेगा।
• भारत का संविधान सर्वोच्च है, जम्मू-कश्मीर का नहीं:
o सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि भारत का संविधान सभी राज्यों, जिनमें जम्मू-कश्मीर भी शामिल है, का सर्वोच्च शासी दस्तावेज था और है।
(In Re.: Article 370 of the Constitution: Judgement, Part E, pg. 175)
o जम्मू-कश्मीर के संविधान का उद्देश्य केवल भारत के अभिन्न अंग के रूप में राज्य के संबंध को 'आगे परिभाषित' करना था, लेकिन इस संबंध की मूल रूपरेखा भारतीय संविधान के अधीन थी, न कि जम्मू-कश्मीर के संविधान के।
(In Re.: Article 370 of the Constitution: Judgement, Part E, pg. 175)
o जम्मू-कश्मीर राज्य के पास अधिमिलन पत्र पर हस्ताक्षर और 25 नवंबर 1949 की घोषणा जारी करने के बाद संप्रभुता का कोई भी तत्व शेष नहीं रहा। भारत में संप्रभुता भारत के लोगों में निहित है।
• जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और अन्य राज्यों के समान है:
o संविधान के अनुच्छेद 370 को अनुच्छेद 1 के साथ पढ़ने पर जम्मू-कश्मीर का राष्ट्र के एक भाग के रूप में एकीकरण पूर्ण था। अनुच्छेद 370 की कोई भी व्याख्या यह नहीं कह सकती कि जम्मू-कश्मीर का भारत के साथ एकीकरण अस्थायी था।
o जम्मू-कश्मीर किसी भी अन्य भारतीय राज्य की तरह है और उसे कोई अलग तरह की संप्रभु शक्ति प्राप्त नहीं है। राज्यों के पास अपनी कोई स्वतंत्र या अकेली संप्रभुता नहीं होती; वे संविधान से अपना अस्तित्व प्राप्त करते हैं।
o यानि ये भ्रम या विमर्श खड़ा करना कि अधिमिलन केवल तीन विषयों तक सीमित था, पूरी तरह से असत्य है। अधिमिलन एक ऐसी प्रक्रिया की शुरुआत थी जो जम्मू-कश्मीर को पूर्ण रूप से भारत के साथ एकीकृत करने वाली थी, और अनुच्छेद 370 इसी एकीकरण को सुगम बनाने के लिए एक अस्थायी साधन था, न कि इसे सीमित करने के लिए।

(In Re.: Article 370 of the Constitution: Judgement pg. 95, 96)
o भ्रम 3: महाराजा स्वतंत्र रहना चाहते थे, इसलिए विलय में देरी हुई। उन्होंने विलय पर हस्ताक्षर करते समय जनमत संग्रह की शर्त रखी थी।
वास्तविकता: अधिमिलन करने की कोई समय सीमा नहीं थी। 15 अगस्त 1947 के बाद बहुत से राज्यों ने अधिमिलन किया। जम्मू कश्मीर का अधिमिलन 26 अक्टूबर 1947 को हुआ। जम्मू कश्मीर के अधिमिलन के बाद लगभग 25 अन्य राज्यों ने भी अधिमिलन किया, जिनमें बरौड़ा (15.12.1947), त्रावणकोर (17.8.1948), भोपाल (24.3.1948) और कोचीन (17.8.1948) शामिल हैं।
o भ्रम 4: जम्मू कश्मीर का अधिमिलन तो हुआ पर विलय/मर्जर नहीं हुआ।
वास्तविकता: यह धारणा भी पूर्णतया: गलत है कि जम्मू-कश्मीर का केवल अधिमिलन हुआ और भारत में उसका पूर्ण विलय नहीं हुआ। तत्कालीन एकीकरण की प्रक्रिया से संबंधित प्राथमिक दस्तावेजों और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार जम्मू-कश्मीर का भारत संघ में पूर्ण एकीकरण हो चुका था।
इसको समझने के लिए सबसे पहले ये समझना महत्वपूर्ण है कि एकीकरण एक प्रक्रिया थी, जिसका मुख्य उद्देश्य भारतीय संविधान को राज्यों व प्रांतों पर भी पूरी तरह लागू करना था। देशभर के अन्य प्रांतों, राज्यों के विलय के संबंध में यह प्रक्रिया मुख्य रूप से 3 प्रकार से चली थी:
• 1. प्रांत (Provinces): ये वे क्षेत्र थे जहाँ 1950 में संविधान लागू होते ही भारतीय संविधान पूरी तरह से लागू हो गया। ये पूर्व गवर्नर प्रांत (ब्रिटिश भारत के प्रांत) थे, जहाँ भारत की स्वतंत्रता से पहले ही ब्रिटिश शासन का सीधा नियंत्रण था। भारत के संविधान (1950) के लागू होते ही इन पर पूरी तरह से संविधान लागू हो गया।
उदाहरण:
• मद्रास
• बॉम्बे
• बंगाल
• बिहार
• संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश)
• पंजाब
• असम
• ओड़िशा (उड़ीसा)
• मध्य प्रांत और बरार (अब मध्य प्रदेश का भाग)
• दिल्ली (मुख्य आयुक्त क्षेत्र)
2. विलय किए गए राज्य (Merged States): ये वे रियासतें थीं जिन्होंने अधिमिलन के साथ-साथ विलय समझौतों (Merger Agreements) पर भी हस्ताक्षर किए। इनके शासकों ने अपने राज्य का प्रशासन भारत सरकार को सौंप दिया। संविधान लागू होते ही उनका स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो गया और वे पूरी तरह से भारत में समाहित हो गए।
इन राज्यों के संविधान को भारतीय संविधान में ही शामिल कर लिया गया था। व्हाइट पेपर ऑन स्टेट्स (1951) के अनुसार, संविधान लागू होने के साथ, विलय किए गए राज्यों ने एक अलग इकाई के रूप में अपने अस्तित्व के सभी निशान खो दिए थे, जिससे उनका क्षेत्रीय एकीकरण पूरा हो गया था।
उदाहरण:
• सौराष्ट्र राज्य: कई छोटी रियासतों को मिलाकर बना
• विन्ध्य प्रदेश: बुंदेलखंड और बघेलखंड की रियासतों को मिलाकर
• मध्य भारत राज्य: ग्वालियर, इंदौर आदि की रियासतों को मिलाकर
• पाटियाला और पूर्वी पंजाब राज्य संघ (PEPSU): पटियाला, नाभा, जींद आदि को मिलाकर
• त्रावणकोर और कोचीन (Travancore–Cochin): दक्षिण भारत की दो रियासतों का एकीकरण
• मैसूर: बाद में पूर्ण राज्य बना
• कूर्ग, बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश: बाद में राज्यों में समाहित
• गैर-विलयकारी राज्य (Non-Merging States) या राज्यों के संघ (Unions of States): इस श्रेणी में वो राज्य थे, जोकि किसी संक्रमणकारी परिस्थिति में थे, इन राज्यों ने भी भारत संघ में अधिमिलन किया और उनके शासकों ने भारतीय संविधान को स्वीकार करने की घोषणाएं जारी कीं, जिसके बाद भारतीय संविधान उन पर लागू हो गया।
जम्मू-कश्मीर इन तीनों में से गैर-विलयकारी राज्यों (Non-Merging States) या राज्यों के संघ की श्रेणी में आता था। अधिमिलन पत्र और युवराज करण सिंह की महत्वपूर्ण घोषणा के माध्यम से जम्मू कश्मीर का एकीकरण पूरा हुआ था।
अब समझिए कि कैसे जम्मू कश्मीर में अधिमिलन के बाद प्रोक्लेमेशन या घोषणा के साथ पूर्ण एकीकरण (Integration) हुआ-
एकीकरण की यह प्रक्रिया कई चरणों में संपन्न हुई:
1. अधिमिलन पत्र (Instrument of Accession) पर हस्ताक्षर (26 अक्टूबर 1947): महाराजा हरि सिंह ने भारत के डोमिनियन में अधिमिलन किया, अपनी संप्रभुता का प्रयोग करते हुए। इसके परिणामस्वरूप, ब्रिटिश सर्वोच्चता (paramountcy) के समाप्त होने के बाद राज्य द्वारा प्राप्त स्वतंत्रता भारत संघ को सौंप दी गई। अधिमिलन पत्र ने रक्षा, विदेशी मामलों और संचार जैसे कुछ विषयों पर डोमिनियन विधायिका को कानून बनाने का अधिकार दिया।
2. युवराज करण सिंह की घोषणा (25 नवंबर 1949) - संप्रभुता का पूर्ण समर्पण: यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण कदम था। इस घोषणा में युवराज करण सिंह ने भारतीय संविधान को स्पष्ट और बिना किसी शर्त के स्वीकार कर लिया था। इस घोषणा में कहा गया था कि भारतीय संविधान के प्रावधान राज्य में उस समय लागू सभी अन्य असंगत संवैधानिक प्रावधानों का स्थान लेंगे और उन्हें समाप्त कर देंगे।
इस घोषणा से वही प्राप्त हुआ जो विलय समझौते से प्राप्त होता, और इसी साथ जम्मू-कश्मीर द्वारा भारत को संप्रभुता का पूर्ण और अंतिम समर्पण कर दिया गया।
3. भारतीय संविधान की सर्वोच्चता:
o भारतीय संविधान का अनुच्छेद 1 कहता है कि भारत एक राज्यों का संघ (Union of States) है, और जम्मू-कश्मीर इस संघ का एक अभिन्न अंग है. अनुच्छेद 370 की कोई भी व्याख्या यह नहीं कह सकती कि जम्मू-कश्मीर का भारत के साथ एकीकरण अस्थायी था।
o जम्मू-कश्मीर के अपने संविधान की प्रस्तावना में भी संप्रभुता का कोई उल्लेख नहीं था। इसके विपरीत, यह स्पष्ट रूप से कहता था कि इसे "भारत में इस राज्य के अधिमिलन के अनुसरण में...भारत संघ के एक अभिन्न अंग के रूप में राज्य के मौजूदा संबंधों को और परिभाषित करने के लिए" अपनाया गया था।

o जम्मू-कश्मीर संविधान की धारा 5 स्पष्ट रूप से मानती है कि संसद का विधायी अधिकार क्षेत्र भारतीय संविधान द्वारा निर्धारित किया जाएगा, न कि जम्मू-कश्मीर के संविधान द्वारा।

o सुप्रीम कोर्ट ने भी एसबीआई बनाम संतोष गुप्ता (2017) मामले में इस तर्क को खारिज कर दिया था कि जम्मू-कश्मीर के संविधान का दर्जा भारतीय संविधान के बराबर है। कोर्ट ने कहा कि भारतीय संविधान जम्मू-कश्मीर सहित सभी राज्यों का सर्वोच्च शासी दस्तावेज था और है। नवंबर 2023 के संवैधानिक खंडपीठ के निर्णय में फिर से इसी बात पर मुहर लगाई गयी।
o यह धारणा कि जम्मू-कश्मीर में 'आंतरिक संप्रभुता' थी जो अन्य राज्यों से भिन्न थी, एक गलत धारणा है। अन्य राज्यों की तरह, जम्मू-कश्मीर की विधायी और कार्यकारी शक्तियाँ भारतीय संविधान से प्राप्त होती हैं। जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासी केवल भारत के नागरिक हैं, कोई दोहरी नागरिकता नहीं है।
4. अनुच्छेद 370 की अस्थायी प्रकृति: अनुच्छेद 370 को संविधान के भाग XXI में "अस्थायी और संक्रमणकालीन प्रावधानों" के तहत रखा गया था. इसका मुख्य उद्देश्य एक अंतरिम व्यवस्था प्रदान करना था, ताकि जम्मू-कश्मीर को धीरे-धीरे अन्य राज्यों के बराबर लाया जा सके। राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 370(1) के तहत संवैधानिक आदेशों (COs) का लगातार उपयोग इस बात का प्रमाण है कि संवैधानिक एकीकरण की यह क्रमिक प्रक्रिया जारी थी. अनुच्छेद 370(3) के तहत राष्ट्रपति द्वारा की गई घोषणा, जो इसे निष्क्रिय कर देती है, एकीकरण की प्रक्रिया की परिणति थी।
(In Re.: Article 370 of the Constitution: Judgement, pg. 277, 278, 306 & 706)
5. संक्षेप में, कहना सही रहेगा कि अधिमिलन, युवराज करण सिंह की घोषणा और भारतीय संविधान के प्रावधानों की स्वीकृति ने यह सुनिश्चित किया कि संप्रभुता का पूर्ण हस्तांतरण हो गया था और जम्मू-कश्मीर भारत संघ का एक अभिन्न और स्थायी हिस्सा बन गया था। अधिमिलन और घोषणा की प्रक्रिया ने इसे अन्य भारतीय राज्यों के समान ही भारत में एकीकृत कर दिया था, जहाँ संप्रभुता अंततः भारत के लोगों में निहित है।
70 वर्षों तक अनुच्छेद 370 का दुरुपयोग कर जम्मू कश्मीर के बारे में झूठे भ्रम फैलाए गए, जिसका परिणाम अलगाववाद और आतंकवाद था। आज इतिहास सही करने का समय आ गया है और इन भ्रमों की वास्तविकता को उजागर किया जा रहा है।
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अध्याय 2: नेहरू-शेख गठजोड़ और सत्ता की सांठगांठ

o नेहरू के इस हठ के कारण जम्मू-कश्मीर के अधिमिलन में देरी हुई और पाकिस्तान को भी आक्रमण करने का मौका मिल गया।
o महाराजा हरि सिंह ने शेख अब्दुल्ला को जेल से छोड़ दिया, लेकिन नेहरू उसके बाद भी अड़े रहे कि अधिमिलन तब ही स्वीकार किया जाएगा जब महाराजा हरि सिंह सत्ता शेख अब्दुल्ला को सौंपेंगे।

विजयी मुस्कान के साथ जेल से बाहर आते शेख अब्दुल्ला
o पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में आगे बढ़ता चला जा रहा था, तब भी नेहरू अपनी जिद पर अड़े हुए थे।
o नेहरू ने तो यह भी मन बना लिया था कि भले ही श्रीनगर पाकिस्तान के कब्जे में चला जाये, उसे बाद में छुड़ा लेंगे, लेकिन जब तक सत्ता शेख को नहीं दी जाएगी जम्मू-कश्मीर का भारत में अधिमिलन नहीं होगा।
o अंततः महाराजा ने शेख को राज्य की सत्ता भी सौंपी, तब जाकर नेहरू ने जम्मू-कश्मीर का अधिमिलन स्वीकार किया।
• जेल से छूटते ही संविधान विरोधी शेख ने दिखाया अपना असली रंग
o जेल में बंद शेख अब्दुल्ला ने जेल से छूटने के लिए पहले महाराजा से माफी मांगी, लेकिन बाद में नेहरू के साथ मिलकर महाराजा हरि सिंह को राज्य से बाहर निकाल दिया और जम्मू-कश्मीर का पूरा नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया।
श्रीनगर एयरपोर्ट को नेहरू की अगवानी करते शेख अब्दुल्ला
o अनुच्छेद 370 को संविधान में लाने में महाराजा हरि सिंह की कोई भूमिका नहीं थी, यह शेख के दिमाग की उपज थी।

1952 में जम्मू कश्मीर संविधान सभा
o निर्विरोध 75 सदस्य संविधान सभा में भेजने के बाद शेख ने अपने रंग दिखाए और अन्य रियासतों की तरह भारतीय संविधान को पूरी तरह लागू करने की बजाय कहा कि जम्मू-कश्मीर के पास स्वतन्त्र रहने का हक है, हम भारतीय संविधान को पूरी तरह सेनहीं मानेंगे। जम्मू-कश्मीर का अलग संविधान होगा, अपना झंडा होगा, अलग प्रधान होगा।
शेख और नेहरू गलत हुए- श्यामा प्रसाद मुखर्जी सही
इतिहास ने सिद्ध किया कि महाराजा हरि सिंह और श्यामा प्रसाद मुखर्जी सही थे और नेहरू और शेख अब्दुल्ला की नीतियाँ गलत थीं।
1947 में नेहरू ने जिस शेख अब्दुल्ला को छोड़ने की शर्त महाराजा हरि सिंह के सामने रखी थी, उसी शेख अब्दुल्ला को खुद नेहरू ने गिरफ्तार किया, जब वो पाकिस्तान जाने की कोशिश कर रहा था।
• संविधान की मूल आत्मा के साथ छेड़खानी
o अनुच्छेद 370 का कार्य जम्मू-कश्मीर में भारत के संविधान को ले जाना था, लेकिन शेख अब्दुल्ला ने इस अनुच्छेद का दुरुपयोग कर भारतीय संविधान को वहाँ पूरी तरह से लागू करने से साफ मना कर दिया।
o उन्होंने अपना अलग संविधान, प्रधान और निशान लाने की शर्त रखी, साथ ही तय किया कि जम्मू-कश्मीर का अपना चुनाव आयोग होगा, अपना CAG, सुप्रीम कोर्ट इत्यादि, और ये सब नेहरू ने मान भी लिया।
o शेख और नेहरू के 'लव-हेट' रिश्ते की वजह से भारतीय संविधान की मूल आत्मा के साथ छेड़खानी की गई, साथ ही जम्मू-कश्मीर के लोगों को अलगाववाद और आतंकवाद भी झेलना पड़ा।
अध्याय 3: अनुच्छेद 370 का राजनीतिक दुरुपयोग: भ्रांतियाँ Vs वास्तविकता

o भ्रम 5: अनुच्छेद 370 एक ब्रिज/सील/चैनल थी, इसलिए हमारा अलग संविधान है, केवल जम्मू कश्मीर की ही संविधान सभा थी।
वास्तविकता: बाक़ी अन्य प्रांतों के पास भी संविधान सभा बनाने का विकल्प था। सौराष्ट्र, मैसूर और कोचीन त्रावणकोर जैसे राज्यों की संविधान सभाएं भी बनीं और उन्होंने भारतीय संविधान अपनाया। जम्मू-कश्मीर में युद्ध की स्थिति के कारण इस प्रक्रिया में देरी हुई और 1951 में जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा बनी। असली समस्या 1952 की राजनीतिक दिल्ली सहमति थी, जिसका हस्ताक्षरित दस्तावेज आज तक उपलब्ध नहीं है।
o भ्रम 6: अनुच्छेद 370 विशेष प्रावधान है।
वास्तविकता: संविधान के भाग XXI (21) में अनुच्छेद 370 है, जिसका शीर्षक "अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष प्रावधान" है। इसमें कुल 36 अनुच्छेद हैं। अनुच्छेद 370 के मार्जिनल नोट में स्पष्ट लिखा है - "जम्मू-कश्मीर के संबंध में अस्थायी प्रावधान"। 'विशेष' शब्द अनुच्छेद 371 के संबंध में जोड़ा गया था, वो भी वर्ष 1962 में।
o भ्रम 7: अनुच्छेद 370 स्थायी है, अगर हटाया तो जम्मू-कश्मीर भारत से आजाद हो जाएगा।
वास्तविकता: 5 अगस्त 2019 को सभी भ्रम टूट गए। केवल अनुच्छेद 1 जम्मू-कश्मीर को भारत से जोड़ता है, न कि 370। आर्टिकल 1 शेड्यूल 1 के अनुसार जम्मू-कश्मीर भारत का राज्य/UT है, और 370 हटने से इस आर्टिकल 1 में कोई परिवर्तन नहीं होगा। 1964 तक की बहसों में अब्दुल गनी लोन ने कहा था, "हम भारत में सेकंड क्लास सिटीजन हैं," जिस पर कश्मीरी समाज ने प्रतिक्रिया दी थी, "अब्दुल गनी लोन गलत कह रहे हैं, हम भी नहीं सेकंड क्लास सिटीजन हैं। 370 हटाइए, हमें भी फर्स्ट क्लास सिटीजन बनाइए।"।
• भारत के संविधान की अवहेलना
o सरदार पटेल, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और डॉ. आंबेडकर अनुच्छेद 370 के विरुद्ध थे।
o शेख अब्दुल्ला ने अनुच्छेद 370 का दुरुपयोग कर भारतीय संविधान को वहाँ लागू करने से साफ मना कर दिया और अपना अलग संविधान, प्रधान और निशान लाने की शर्त रखी, जिसे नेहरू ने मान भी लिया।
o अनुच्छेद 370 के कारण भारतीय संविधान की प्रस्तावना में लिखित 'धर्मनिरपेक्ष', 'समाजवादी' और 'अखंड' शब्द जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होते थे।
o भारत के हर नागरिक को दिए गए मौलिक अधिकार जम्मू-कश्मीर में पूरी तरह से लागू नहीं थे।
o अनुच्छेद 21A, समान शिक्षा का अधिकार (RTE), जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं था।
o 73वें और 74वें संशोधन के कारण पूरे देश में त्रि-स्तरीय शासन व्यवस्था (DDC- जिला विकास परिषद, BDC- ब्लॉक विकास परिषद एवं ग्राम सभा) विकसित हुई, लेकिन आर्टिकल 370 के चलते यह जम्मू और कश्मीर में यह लागू नहीं हो पाया था।
o संविधान के कई महत्वपूर्ण एक्ट जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं किए गए थे।
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अध्याय 4: प्रजा परिषद आंदोलन और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान
• जम्मू के लोगों का स्वाभिमान आधारित संघर्ष
o शेख अब्दुल्ला की अलगाववादी नीतियों के विरुद्ध जम्मू-कश्मीर के लाखों लोग खड़े हुए और स्वतंत्रता के बाद पहला राष्ट्रवादी आंदोलन ‘प्रजा परिषद् आंदोलन’ शुरू हुआ।
o पंडित प्रेमनाथ डोगरा के नेतृत्व में जम्मू कश्मीर के लोगों ने भारत के राष्ट्रीय ध्वज और संविधान को सामने रखकर आंदोलन किया।

26 नवंबर को जम्मू संभाग में पं. प्रेमनाथ डोगरा ने एक विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए प्रजा परिषद् के 14 साथियों के साथ पहली गिरफ्तारी दी। उनकी गिरफ्तारी के बाद जम्मू के लोगों ने जगह-जगह धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया। पूरे जम्मू में पं. प्रेमनाथ डोगरा का दिया हुआ एक ही नारा गुँजने लगा “एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान- नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे। ” सांबा में डोगरी भाषा के प्रख्यात कवि रघुनाथ सिंह के नेतृत्व में भारी संख्या में लोगों ने प्रदर्शन किया। एक सप्ताह के भीतर ही प्रजा परिषद् का यह आन्दोलन सूदूर के गांवों तक जन आन्दोलन के रूप में फैल गया। स्थानीय स्तर पर ग्रामीणों ने जगह जगह पर सरकारी भवनों में तिरंगा फहराने लगे।


o शेख अब्दुल्ला कीसरकार ने राष्ट्रध्वज उठाने वाले लोगों पर गोलियां चलवाईं, जिसमें तिरंगा उठाए 14 लोगों को गोलियां मार दी गईं।
o जम्मू-कश्मीर की राष्ट्रभक्त जनता ने 1951-52 में ही स्पष्ट कर दिया था कि एक देश में दो विधान नहीं हो सकते, प्रजापरिषद् आंदोलन का यही आधार था।
• "एक देश, एक विधान" की पुकार
o देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले इन लोगों की आवाज को राष्ट्रीय पहचान डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने दी, जिन्होंने नारा दिया- “एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं हो सकते।”।
o डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने यह भी कहा था कि यदि “भारतीय संविधान 4 करोड़ देश के मुसलमानों के लिए अच्छा है तो जम्मू-कश्मीर के 15 लाख मुसलमानों के लिए कैसे गलत हो सकता है।“
• डॉ मुखर्जी का बलिदान और संवैधानिक चेतना की जागृति
o डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने पूरे भारत में शेख अब्दुल्ला की असलियत लोगों को बताकर एक जनजागृति का अभियान चलाया।
o शेख अब्दुल्ला ने तब नेहरू को धमकी दी कि यदि श्यामा प्रसाद मुखर्जी को रोका नहीं गया तो जम्मू-कश्मीर के पास पाकिस्तान जाने के लिए विकल्प खुला है।
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी
o डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जम्मू-कश्मीर जाकर आंदोलन को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया, लेकिन पंजाब से जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करते समय उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और नजरबंद कर दिया गया, जहां संदिग्ध परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई।
o उस समय के साक्ष्य इस ओर इशारा करते हैं कि यह प्राकृतिक मृत्यु नहीं थी, बल्कि योजनाबद्ध तरीके से की गई हत्या थी।
o लेकिन डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान व्यर्थ नहीं गया, और पूरे देश के सामने शेख की पोल खुल गई।
मृत्यु-शैय्या पर डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी
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अध्याय 5: अनुच्छेद 370 के सामाजिक-राजनीतिक दुष्परिणाम
• महिलाओं, दलितों, ओबीसी, शरणार्थियों के अधिकारों का हनन
o अनुसूचित जनजाति समुदाय को जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक आरक्षण नहीं दिया गया था।
o जम्मू-कश्मीर में ओबीसी समुदाय को चिन्हित नहीं किया गया था, जिससे हिन्दू एवं मुसलमानों के ओबीसी समुदाय के अधिकारों का हनन हुआ।
o दलित सफाई-कर्मचारियों के साथ अन्याय हुआ, उन्हें तीन पीढ़ियों तक केवल सफाईकर्मी बनकर पेट भरने के लिए मजबूर किया गया।
o वेस्ट पाकिस्तान रिफ्यूजी के साथ जम्मू-कश्मीर में 70 वर्षों से दोयम दर्जे का व्यवहार हो रहा था।
o यही हालत सदियों से जम्मू-कश्मीर में रह रहे गोरखा समाज की भी थी।
o जम्मू-कश्मीर में महिला को, चाहे वह हिन्दू, मुस्लिम या सिख हो, यदि जम्मू-कश्मीर से बाहर शादी करती थी तो उसके सभी अधिकार छीन लिए जाते थे।
o जम्मू-कश्मीर के असली पीड़ितों में पीओजेके डिस्प्लेस्ड शामिल थे, जो पीआरसी (परमानेंट रेजिडेंट सर्टिफिकेट) से वंचित थे।
o कश्मीरी हिंदू और अनुच्छेद 35A के विक्टिम भी असली पीड़ितों में थे।
कई दशकों तक आर्टिकल 35ए के चलते मूलभूत अधिकारों से पीड़ित रहा दलित बाल्मीकि समाज
• लोकतंत्र, विकास और न्याय की अवहेलना
o 73वें और 74वें संशोधन के कारण पूरे देश में त्रि-स्तरीय शासन व्यवस्था (DDC- जिला विकास परिषद, BDC- ब्लॉक विकास परिषद एवं ग्राम सभा) विकसित हुई, लेकिन आर्टिकल 370 की बाधा के चलते जम्मू और कश्मीर में यह कानून लागू नहीं हो पाया।
o ग्रामीण जम्मू-कश्मीर निवासी पंचायती राज व्यवस्था के लागू न होने से पीड़ित थे। 7 दशकों पर जम्मू कश्मीर पर चंद परिवारों का ही कब्जा रहा, सामान्य नागरिकों को राजनीति में आगे बढ़ने के मौके बेहद सीमित थे।
• धर्म और क्षेत्र आधारित भेदभाव की जड़ें
o जम्मू-कश्मीर में गैजेटेड और नॉन-गैजेटेड दोनों अधिकारियों के चयन में ज्योग्राफी और समुदाय के आधार पर भेदभाव होता था।
o उदाहरण के लिए, पीएससी (लोक सेवा आयोग) में जम्मू के परीक्षार्थी अच्छे नंबर लाते थे, लेकिन इंटरव्यू में एक विशेष वर्ग को ही ज्यादा नंबर दिए जाते थे, परिणामस्वरूप जम्मू पिछड़ जाता था।
• आतंकवाद और अलगाववाद को बढ़ावा
o अनुच्छेद 370 के दुरुपयोग के चलते जो अलगाववाद की भावना खड़ी हुई, यही 1990 में शुरू हुए आतंकवाद का आधार बनी।
o इसका परिणाम लाखों हिन्दुओं का कश्मीर से विस्थापन, और 40,000 से ज्यादा कश्मीरी हिन्दू, पुलिस और सेना के जवानों का बलिदान था।
o भ्रम 8- 1987 में जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनावों में धांधली हुई, तभी आतंकवाद बढ़ा।
वास्तविकता: आतंकवाद की शुरुआत का आधार 1987 से दशकों पहले तैयार हो चुका था। यह एक सुविचारित राजनीतिक प्रक्रिया और 'विलगाव की मानसिकता' का परिणाम था।
• मसलन 1952 में ही "आजादी के विकल्प" की बात शुरू हुई थी। शेख अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 1952 में कहा कि राज्य को भारतीय संघ से अलग होने का विकल्प मिलना चाहिए। यह भारत के संविधान की आत्मा के खिलाफ था।
• उन्होंने यह भी कहा कि जम्मू-कश्मीर का "स्वतंत्र भविष्य" तय करने का अधिकार केवल उसकी जनता को है, जबकि यह बात इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन (1947) के विरुद्ध थी, जिसमें राज्य का भारत से स्थायी विलय हो चुका था।
• इसके बाद 1971 में इंडियन एयरलाइंस अपहरण प्रकरण हुआ, आतंकियों द्वारा इंडियन एयरलाइंस के विमान "गंगा" को हाइजैक किया गया और लाहौर ले जाया गया।
• इस अपहरण में शामिल आतंकवादियों को पाकिस्तान में शरण मिली, और JKLF (Jammu & Kashmir Liberation Front) के बीज यहीं से जमने लगे। भारत सरकार ने इसके बाद श्रीनगर-लाहौर उड़ानों पर रोक लगा दी, लेकिन इस घटना ने आतंकवाद को अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप देना शुरू किया।
• 1978 में JKLF की स्थापना- पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकी संगठन JKLF की स्थापना लंदन में 1978 में हो चुकी थी, जिसका उद्देश्य था जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करना।

- यह एक सशस्त्र और पृथकतावादी संगठन था, जिसने
कश्मीर घाटी में आतंकवाद की जड़ें फैलाना शुरू किया। ध्यान रहे कि ये 1987 से
लगभग एक दशक पहले अस्तित्व में आया था।
- 20 फरवरी – मार्च 1986 में दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग, वानपो, लक भवन, डेयलगाम, सपोरा, फतेहपुर सहित गांवों में हिंदू‑विरोधी दंगे और हमले हुए। दर्जनों
मंदिरों को क्षतिग्रस्त किया गया, हज़ारों हिंदू परिवार विस्थापित हुए।
इन दंगों के पीछे तत्कालीन मुख्यमंत्री
गुल शाह के भड़काऊ बयान- "इस्लाम खतरे में है" और भारत विरोधी ताकतें
बड़ा कारण थे। इन दंगों की जांच के लिए बनी कमिटी रिपोर्ट के अनुसार, अनंतनाग क्षेत्र में कम से कम 52 मंदिर
तोड़े गए अथवा जलाए गए थे। ये दंगें 1987 के चुनावों से पहले हुए थे।
स्पष्ट है कि नेहरू सरकार ने बलंडर
शुरुआत में ही कर दिया था। शेख को नेहरू संविधान विरोधी मांगों को स्वीकार
करना, जैसे:
अलग संविधान
अलग झंडा
अलग 'प्रधान'
ये सब केंद्र सरकार की लचीलापन नहीं
बल्कि संवैधानिक
आत्मसमर्पण था। इसने जम्मू-कश्मीर को "भारत से अलग और विशेष" की एक काल्पनिक
भावना दी,
जिससे "हम और वे" का
नैरेटिव पैदा हुआ।
अतः यह कहना कि आतंकवाद सिर्फ 1987 के
चुनावों की देन है, एक भ्रम और सच्चाई से कोसों दूर है।
अध्याय 6: अनुच्छेद
370 की समाप्ति- संवैधानिक और शांतिपूर्ण प्रक्रिया
- अनुच्छेद 370 के तहत लिया गया निर्णय
- 5 अगस्त 2019 को
अनुच्छेद 370 से जुड़े सभी भ्रम टूट गए।
- अनुच्छेद 370
के संशोधन के बाद सकारात्मक परिवर्तन आए हैं।
- 5 अगस्त से पहले भारतीय संविधान के 150
से ज्यादा अनुच्छेद/एक्ट जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं थे।
- 5 अगस्त के बाद 890 केंद्रीय कानून/अधिनियम प्रदेश में लागू किए गए।
- भारत का संविधान संपूर्णता के साथ
बिना किसी संशोधन के लागू हुआ है।
- राज्य पुनर्गठन और कानूनी वैधता
- अनुच्छेद 1 शेड्यूल 1 के अनुसार जम्मू-कश्मीर अब भारत का
राज्य/UT है, और 370 हटने से इस आर्टिकल 1 में कोई परिवर्तन नहीं
हुआ है।
- 5 अगस्त से पहले जम्मू-कश्मीर में
दो संविधान और दो ध्वज थे, जबकि 5 अगस्त के बाद एक संविधान और एक ध्वज है, जिससे
भारतीय संविधान की सर्वोच्चता स्थापित हुई

जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम लागू होने के बाद केंद्र शासित प्रदेश, जम्मू कश्मीर व लद्दाख का मानचित्र
अध्याय 7: नए जम्मू-कश्मीर और समान अधिकारों की पुनर्स्थापना
- एससी, एसटी, ओबीसी और महिलाओं को मिला न्याय
- जम्मू-कश्मीर में आज अनुसूचित जनजाति समुदाय को राजनीतिक आरक्षण मिला है। DDC- जिला विकास परिषद और BDC- ब्लॉक विकास परिषद चुनावों में अनुसूचित जनजाति प्रतिनिधि चुनकर आए हैं। विधानसभा में अनुसूचित जनजाति के लिए 9 सीटें, जिला परिषदों में 20 परिषद् और 280 सीटें, तथा महिला व एससी के लिए 13 सीटें आरक्षित की गई हैं।
- हजारों दलित-वंचितों को, शेष भारत के नागरिकों के समान अधिकार मिले और जम्मू कश्मीर का डोमिसाइल/मूल-निवासी प्रमाण पत्र मिले।
2020 में नई डोमिसाइल नीति लागू होने के बाद, बाल्मिकी समाज की पीड़ित महिला कृष्णा अपना डोमिसाइल दिखाते हुए
o अप्रैल 2025 तक जम्मू कश्मीर में करीब 84 हजार वंचित निवासियों को जम्मू कश्मीर का मूल-निवास प्रमाण पत्र अथवा डोमिसाइल जारी किये जा चुके हैं। इनमें बाल्मीकि समाज, वेस्ट पाकिस्तान रिफ्यूजी, गोरखा, प्रवासी कश्मीरी हिंदू, और शेष भारत में बसे पीओजेके विस्थापित शामिल हैं।
o जम्मू-कश्मीर में पहली बार ओबीसी समुदाय की सटीक पहचान हुई है। जीडी शर्मा कमीशन द्वारा गठित सिफारिशों के अनुसार 15 पिछड़ी जातियों को आरक्षण प्रदान किया गया हैं, इनमें चोपान, भाटी, जाट, सैनी, सोची, पोनीवाल, क्रिश्चियन वाल्मीकि, तेली, कौरव, बोजरू / गद्दे ब्राह्मण, गोकरण, गोरखा, वेस्ट पाकिस्तानी शरणार्थी और आचार्य समाज को आरक्षण दिया है। कश्मीर और जम्मू क्षेत्रों के हिन्दू और मुस्लिम समाज के जो लोग वर्षों से अपने अधिकारों से वंचित थे, उन्हें उनके संविधान सम्मत अधिकार दिए जा रहे हैं। कश्मीर में बड़ी संख्या में ओबीसी समुदाय ने अपने मेयर/सदस्य चुने हैं।
o जम्मू-कश्मीर में महिला को चाहे हिन्दू, मुस्लिम या सिख हो, यदि जम्मू-कश्मीर से बाहर शादी करती थी तो उसके सभी अधिकार छीन लिए जाते थे। आज महिलाओं को सही मायने में स्वतंत्रता मिली है।
o सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को चिन्हित करने के लिए कमीशन बनाया गया, जिसने पहाड़ी, पाडरी, गद्दी ब्राह्मण जैसे समुदायों को अनुसूचित जनजाति दर्जा देने की सिफारिश की है। यह मांग पिछले 30 वर्षों से जम्मू-कश्मीर में थी।
o शेष भारत में रह रहे PoJK Displaced कम्युनिटी के लोग, जिन्हें 70 वर्षों से जम्मू-कश्मीर की सरकार जम्मू-कश्मीर के रेजीडेंट मानने से इनकार कर रही थी, को आज डोमिसाइल दिए जा रहे हैं। 25000 से अधिक डोमिसाइल बनाये जा चुके हैं।
5 अगस्त 2019 को राज्यसभा में आर्टिकल 370 व 35ए के निरस्तीकरण की घोषणा करते गृहमंत्री अमित शाह
- अधिकारों का पुनः अधिष्ठापन
- आज संविधान के सभी प्रावधान जम्मू-कश्मीर में लागू किए गए हैं।
- 890 जनकल्याण से जुड़े एक्ट लागू हुए हैं, जिसमें-
ü
इंडियन पीनल कोड,
ü पर्सन्सविद डिसेबिलिटीज एक्ट,
ü नेशनलकमीशन फॉर सफाई कर्मचारी एक्ट,
ü नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एक्ट,
ü द शेड्यूल्ड कास्ट्स एंड शेड्यूल्ड ट्राइब्स (प्रिवेंशन ऑफ़ एट्रोसिटीज) एक्ट,
ü द व्हिसल ब्लोअर्स प्रोटेक्शन एक्ट,
ü द नेशनल कमीशन फॉर माइनॉरिटीज एक्ट,
ü द इनडिसेंट रिप्रेजेंटेशन ऑफ वीमेन (प्रोहिबिशन) एक्ट,
ü द ग्राम न्यायालय एक्ट,
ü द डीलिमिटेशन एक्ट,
ü द कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट,
ü द हिंदू अडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट,
ü द हिंदू सक्सेशन एक्ट,
ü द हिंदू मैरिज एक्ट,
ü द इंडियन फॉरेस्ट एक्ट,
ü द जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन) एक्ट,
ü द प्रोटेक्शन ऑफ ह्यूमन राइट्स एक्ट, और
ü द राइट टू इन्फॉर्मेशन एक्ट, जैसे एक्ट शामिल थे।
- भारतीय संविधान पूरी तरह लागू हुआ है।
- प्रस्तावना में लिखित सेक्युलर, सोशलिस्ट और इंटीग्रिटी शब्द, जो पहले जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होते थे, अब लागू होते हैं।
- शपथ के टेक्स्ट में अब भारतीय संविधान के प्रति निष्ठा शामिल है। 2024 में जम्मू कश्मीर UT के नये मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला समेत तमाम 90 विधायकों ने भारतीय संविधान के प्रति निष्ठा और रक्षा की शपथ ली।
- भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार अब जम्मू कश्मीर में भी पूरी तरह लागू होते हैं।
अक्टूबर 2024 में उमर अब्दुल्ला ने सीएम पद के लिए भारतीय संविधान की शपथ ली
- पहली बार हर वर्ग की सहभागिता
- DDC- जिला विकास परिषद, BDC-
ब्लॉक विकास परिषद एवं ग्राम सभा के रूप में प्रजातंत्र हर
स्तर पर आया है।
- 17 अक्टूबर 2020 में त्रि-स्तरीय
पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के बाद जम्मू कश्मीर में पहली बार-
ü 280
जिला परिषद् सदस्य,
ü 20
जिला परिषद् अध्यक्ष
ü 310
ब्लॉक परिषद् अध्यक्ष
ü 1068
शहरी स्थानीय निकाय परिषद् सदस्य
ü 4,026
ग्राम पंचायत के सरपंच
ü 28,624 ग्राम पंचायत सदस्य चुने गये।
- जनजागरूकता एरिया में 200
से ज्यादा स्कूलों को स्मार्ट स्कूल बनाया गया है।
- पीएससी (लोक सेवा आयोग) चयन में अब
मेरिट के आधार पर चयन किया जा रहा है, और पारदर्शिता
बढ़ी है। जिस दिन इंटरव्यू होता है, उसी दिन फाइनल
लिस्ट बाहर आती है।
अध्याय 8: परिसीमन,
निर्वाचन सुधार और लोकतांत्रिक पुनर्गठन
- जनसंख्या और प्रतिनिधित्व का संतुलन
- जम्मू-कश्मीर में विधानसभा का
जनसंख्या, क्षेत्रफल की दृष्टि से न्याय करते हुए विधानसभा का
परिसीमन/चुनावी सुधार हुए।
- कुल विधानसभा सीटें 83 से बढ़कर 90 हो गई हैं।
- एसटी आरक्षित सीटें 0 से बढ़कर 9 हो गई हैं।
- पीओजेके विस्थापितों के लिए आरक्षित
सीटें 0 से बढ़कर 1 हो गई
हैं।
- कश्मीरी हिन्दुओं के लिए आरक्षित
सीटें 0 से बढ़कर 2 हो गई
हैं।
- जम्मू की 43 और कश्मीर की 47 सीटें निर्धारित की गई हैं।
- विधानसभा सीटें बढ़ीं - जम्मू में 6 और कश्मीर में 1।
- प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र में 18 विधानसभा सीटें हैं।
- 2022 परिसीमन आयोग ने अपना कार्य
पूरा किया है।
- चुनावों में भागीदारी का व्यापक
विस्तार
- DDC- जिला विकास परिषद और BDC-
ब्लॉक विकास परिषद चुनावों में अनुसूचित जनजाति प्रतिनिधि
चुनकर आए हैं।
- कुछ 280 जिला परिषद् सदस्यों में से
100 सीटों पर महिलाओं को आरक्षण
- 20 जिला परिषद् अध्यक्ष पद में 6
महिलाओं और 3 एससी-एसटी के लिए आरक्षित किया गया।
- DDC- जिला विकास परिषद, BDC-
ब्लॉक विकास परिषद एवं ग्राम सभा के रूप में प्रजातंत्र हर
स्तर पर आया है।
- कश्मीर में बड़ी संख्या में ओबीसी
समुदाय ने अपने मेयर/सदस्य चुने हैं।
- सत्ता के विकेंद्रीकरण की शुरुआत
- त्रि-स्तरीय शासन व्यवस्था (DDC-
जिला विकास परिषद, BDC- ब्लॉक विकास
परिषद एवं ग्राम सभा) का लागू होना सत्ता के विकेंद्रीकरण की दिशा में एक
महत्वपूर्ण कदम है। 280 जिला पंचायत सदस्यों में से 90 फीसदी से ज्यादा
उम्मीदवारों ने पहली बार राजनीति में एंट्री की थी।
अध्याय 9: अनुच्छेद
370 के बाद सामाजिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण
- मार्च 2021 में जम्मू
में शिवरात्रि फेस्टिवल का आयोजन किया गया।
- 20 मार्च 2021 को श्रीनगर के बादामवारी बाग में स्प्रिंग सेलिब्रेशन हुआ।
- जून 2021 में
तिरुपति मंदिर का शिलान्यास किया गया।
- 'एक देश एक टैक्स' की नीति को ध्यान में रखते हुए लखनपुर टोल को समाप्त किया गया।
- कश्मीर अब सीधे रेलमार्ग से जुड़ चुका
है, वाया कटरा अब आप सीधे ट्रेन के माध्यम से बारामूला तक यात्रा कर सकते
हैं। अब सर्दियों में वैली और शेष भारत के बीच अबाध रूप से रेल यातायात जारी
रहेगा।

- डोडा के विश्वप्रसिद्ध गुच्ची मशरूम का जीआई टैगिंग (GI tagging) हो चुकी है, और इसी प्रकार आरएसपुरा के बासमती चावल को ऑर्गेनिक प्रमाण पत्र प्रदान किया गया।
- 2024 और 2025 में जम्मू और कश्मीर में पर्यटकों की संख्या में महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई, ये बदलते जम्मू कश्मीर की सबसे उज्जवल तस्वीर है।
-2024 में जम्मू में कुल 2,00,91,379 पर्यटक आए, जिनमें से 94,55,605 वैष्णो देवी के तीर्थयात्री थे।
-कश्मीर में 34,98,702 पर्यटक आए, ये एक रिकॉर्ड है।
-2025 में जनवरी से जून 2025 तक जम्मू और कश्मीर में रिकॉर्ड 95.9 लाख घरेलू पर्यटक आए। इसमें पहले छह महीनों में 19,570 विदेशी पर्यटक आये।
--2025 के अप्रैल में पहलगाम आतंकी हमले के बाद, कश्मीर घाटी के पर्यटन में अस्थायी गिरावट आई। लेकिन यहां फिर से 2025 के जून तक, पर्यटन गतिविधियाँ फिर से सामान्य हो गईं, और पर्यटकों की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है।
अध्याय 10: एक राष्ट्र, एक संविधान, एक उज्जवल भविष्य
o जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में अनुच्छेद 370 के 70 वर्षों तक किए गए दुरुपयोग ने क्षेत्र में व्यापक भ्रम एवं गलतफहमियां पैदा कीं, जिसके फलस्वरूप अलगाववाद और आतंकवाद को बढ़ावा मिला। यह अवधि इस दृष्टि से अत्यंत चुनौतीपूर्ण रही, जिसने राष्ट्र की अखंडता एवं एकता को प्रभावित किया। तथापि, वर्तमान समय में इस इतिहास की समीक्षात्मक पुनःस्थापना अनिवार्य हो गई है।
o 5 अगस्त 2019 से पूर्व, जम्मू-कश्मीर में दो पृथक संविधानों एवं दो ध्वजों का अस्तित्व था, जो क्षेत्र की संवैधानिक स्थिति को जटिल बनाता था। परंतु 5 अगस्त के बाद भारतीय संविधान की सर्वोच्चता की स्थापना के साथ ही पूरे क्षेत्र में एक संविधान और एक राष्ट्रध्वज की अवधारणा को सुदृढ़ किया गया है। यह परिवर्तन न केवल संवैधानिक एकरूपता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि देश के समग्र विकास एवं एकता की दिशा में भी एक नया अध्याय प्रारंभ करता है।
जय हिंद