जम्मू कश्मीर सरकार ने 25 किताबों पर लगाई रोक, देश की एकता और शांति के लिए बताया खतरा

    07-अगस्त-2025
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 J&K govt bans 25 books
 
जम्मू कश्मीर के गृह विभाग ने प्रदेश में उग्रवाद और अलगाववाद की पृष्ठभूमि में एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए 25 पुस्तकों के प्रकाशन, वितरण और प्रचार-प्रसार पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह निर्णय गृह विभाग द्वारा जारी एक औपचारिक आदेश के माध्यम से लिया गया, जिसमें इन पुस्तकों को युवाओं को गुमराह करने वाला और राष्ट्र विरोधी मानसिकता को बढ़ावा देने वाला बताया गया है।
 
 
सरकारी आदेश में कहा गया है कि ये पुस्तकें वर्षों से युवाओं के कट्टरपंथीकरण, हिंसा की ओर झुकाव और आतंकवादी विचारधारा के प्रसार में एक 'सिस्टमेटिक नैरेटिव' के रूप में कार्य कर रही हैं। जांच और विश्वसनीय खुफिया सूचनाओं के आधार पर यह पाया गया कि इन किताबों में प्रयुक्त भाषा, ऐतिहासिक तथ्यों की तोड़-मरोड़ और राजनीतिक टिप्पणियाँ युवाओं को भारतीय राष्ट्र के विरुद्ध खड़ा करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती हैं।
 
 
 

प्रतिबंधित पुस्तकों में कौन-कौन शामिल?
 
 
गृह विभाग द्वारा प्रतिबंधित की गई पुस्तकों में कई विवादास्पद और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित लेखकों के नाम शामिल हैं:
 
 
आज़ादी — अरुंधति रॉय
 

कश्मीर: फाइट फॉर फ्रीडम — मोहम्मद यूसुफ सर्राफ
 

इंडिपेंडेंट कश्मीर — क्रिस्टोफर स्नेडेन
 

बिटवीन डेमोक्रेसी एंड नेशन — सीमा काज़ी
 

ए डिसमेंटल्ड स्टेट: कश्मीर आफ्टर
 

आर्टिकल 370 — अनुराधा भसीन
 

कश्मीर एट द क्रॉसरोड्स — सुमंत्र बोस
 

द कश्मीर डिस्प्यूट — ए.जी. नूरानी
 

अन्य लेखक जिनके नाम आदेश में शामिल हैं, वे भी लंबे समय से कश्मीर पर विवादास्पद आख्यानों के लिए जाने जाते रहे हैं।
 

आख्यानों की आड़ में ‘मानसिक युद्ध’
 
सरकार का तर्क है कि इन पुस्तकों के माध्यम से कश्मीर के युवाओं के बीच ‘शिकायत’, ‘पीड़ित होने’ और ‘आतंकवाद की घटनाओं को योजनाबद्ध तरीके से गढ़ा गया है। यह साहित्य अक्सर इतिहास को विकृत कर प्रस्तुत करता है, जिसमें भारतीय सेना और सुरक्षा बलों को बदनाम करने, धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा देने और अलगाववादी मानसिकता को सामान्य बनाने के प्रयास साफ देखे जा सकते हैं।
 
 
सरकारी आदेश में स्पष्ट किया गया है कि यह सिर्फ पुस्तकें नहीं, बल्कि एक 'नैरेटिव वॉर' (वर्णनात्मक युद्ध) का हिस्सा हैं, जो सीधे तौर पर युवाओं के मानस पर हमला कर उन्हें राष्ट्र विरोधी गतिविधियों की ओर प्रेरित करती हैं।
 
 
प्रतियों की जब्ती का आदेश भी जारी
 
 
केवल प्रकाशन पर ही नहीं, बल्कि इन पुस्तकों की सभी उपलब्ध प्रतियों, दस्तावेजों और संबंधित सामग्री की जब्ती के निर्देश भी जारी किए गए हैं। सरकार ने इसे कानून व्यवस्था, राष्ट्रीय अखंडता और सार्वजनिक शांति के हित में आवश्यक कदम बताया है।
 
 

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम राष्ट्र की सुरक्षा
 
 
यह निर्णय निश्चित रूप से एक बड़ी बहस को जन्म देगा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम राष्ट्र की सुरक्षा। लेकिन जम्मू कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्र में जहां वर्षों से भारत विरोधी भावनाओं को 'बौद्धिक साहित्य' की आड़ में बढ़ावा दिया जाता रहा है, वहां इस तरह के कठोर लेकिन जरूरी फैसले को कई सुरक्षा विशेषज्ञ ‘नैरेटिव कंट्रोल’ की दिशा में निर्णायक कदम मान रहे हैं।