1947 में आज़ादी और विभाजन के बाद भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी रियासतों का भारत में विलय। लगभग 562 रियासतों ने भारतीय संघ का हिस्सा बनने का फैसला कर लिया।
लेकिन तीन जगह समस्या खड़ी हुई – जम्मू कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद।
हैदराबाद सबसे बड़ी रियासत थी, जिसका क्षेत्रफल 82,000 वर्ग मील और जनसंख्या 1.6 करोड़ थी। यहाँ 85% हिंदू थे, लेकिन शासन मुस्लिम निज़ाम के हाथों में था।
निज़ाम मीर उस्मान अली खान दुनिया के सबसे अमीर शासकों में गिना जाता था।
उसने भारत में विलय से साफ इनकार कर दिया और चाहता था कि हैदराबाद या तो स्वतंत्र मुस्लिम राष्ट्र बने या पाकिस्तान से जुड़ जाए।
निज़ाम और पाकिस्तान की गुप्त साज़िश
निज़ाम ने अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए पाकिस्तान से संपर्क किया।
निज़ाम ने पाकिस्तान को 20 करोड़ रुपये की मदद दी।
पाकिस्तान ने हैदराबाद को हथियार और गोला-बारूद भेजना शुरू किया। हैदराबाद ने गुप्त रूप से अपनी सेना को आधुनिक बनाने की कोशिश की।
इस बीच पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हैदराबाद की अलग पहचान बनवाने की कोशिश की, लेकिन ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों ने भारत का ही समर्थन किया।
रज़ाकार : हिंदुओं पर आतंक का साया
निज़ाम के साथ खड़ा था मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (MIM) का नेता क़ासिम रिज़वी, जिसने “रज़ाकार” नामक संगठन बनाया।
रज़ाकारों ने हैदराबाद में हिंदुओं पर भयानक अत्याचार किए :
गाँव-गाँव जाकर लूटपाट, बलात्कार और हत्याएँ कीं। केवल 1947–48 में ही हजारों हिंदू मारे गए। हजारों महिलाओं के साथ बलात्कार हुए और उन्हें जबरन धर्मांतरण झेलना पड़ा। हजारों गाँव जलाए गए।
इतिहासकारों के अनुसार, हैदराबाद मुक्ति के दौरान और उसके बाद हुई हिंसा में लगभग 27,000 से अधिक लोग मारे गए।
क़ासिम रिज़वी खुलेआम कहता था –
“अगर भारतीय सेना हैदराबाद में घुसी, तो हिंदुओं का सागर खून में बदल जाएगा।”
सरदार पटेल का निर्णायक दृष्टिकोण
भारत के गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को यह स्थिति अस्वीकार्य थी।
उन्होंने साफ कहा :
भारत के बीचोंबीच एक मुस्लिम राज्य नहीं बनने दिया जाएगा। हैदराबाद में हो रही हिंदुओं की हत्याएँ और पाकिस्तान से गुप्त संबंध भारत की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा हैं।
पटेल ने निज़ाम को समझाने के लिए कई दौर की बातचीत की। लेकिन जब हिंसा बढ़ती गई और निज़ाम पाकिस्तान से मदद मांगने लगा, तब पटेल ने सैन्य कार्रवाई का आदेश दे दिया।
ऑपरेशन पोलो : 5 दिन की निर्णायक लड़ाई
13 सितंबर 1948 की सुबह भारतीय सेना ने हैदराबाद में प्रवेश किया। इस कार्रवाई का कोड नाम था – ऑपरेशन पोलो।
इसमें भारतीय सेना के लगभग 40,000 सैनिक शामिल थे।
सेना चार दिशाओं से हैदराबाद में घुसी – औरंगाबाद, शोलापुर, विजयवाड़ा और गुलबर्गा से।
भारतीय वायुसेना ने हैदराबाद की हवाई पट्टियों पर बमबारी की।
केवल 109 भारतीय सैनिक बलिदान हुए, जबकि हैदराबाद सेना और रज़ाकारों के लगभग 1,373 लोग मारे गए।
17 सितंबर 1948 को हैदराबाद की सेना और रज़ाकार पूरी तरह हार गए और निज़ाम ने आत्मसमर्पण कर दिया।
आत्मसमर्पण और हैदराबाद का विलय
17 सितंबर को निज़ाम ने रेडियो पर घोषणा की कि वह भारत में विलय स्वीकार करता है। उसे नाममात्र का “राजप्रमुख” बनाए रखा गया, लेकिन असली सत्ता भारत सरकार के पास आ गई। हैदराबाद अब भारत गणराज्य का हिस्सा बन चुका था।
हैदराबाद मुक्ति दिवस का महत्व
यह केवल एक राज्य का भारत में विलय नहीं था, बल्कि यह भारत की अखंडता की जीत थी। सरदार पटेल ने दिखा दिया कि जब बात राष्ट्रीय सुरक्षा और हिंदुओं की रक्षा की हो, तो कठोर निर्णय लेने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए।
इस दिन ने भारत को एक संदेश दिया –
“भारत की धरती पर पाकिस्तान समर्थित कोई अलग राष्ट्र कभी सफल नहीं होगा।”
निष्कर्ष
17 सितंबर 1948 को हैदराबाद का विलय हुआ, लेकिन इसके पीछे की कहानी हिंदुओं के बलिदान, रज़ाकारों के आतंक और सरदार पटेल की लौह इच्छाशक्ति से जुड़ी हुई है।
यह दिन हमें याद दिलाता है कि भारत की एकता किसी व्यक्ति की महत्वाकांक्षा से बड़ी है। निज़ाम का सपना भले ही पाकिस्तान जैसा मुस्लिम राष्ट्र बनाने का था, लेकिन ‘ऑपरेशन पोलो’ ने उसे चकनाचूर कर दिया।
आज 17 सितंबर को हम केवल हैदराबाद मुक्ति दिवस ही नहीं, बल्कि भारत की राष्ट्रीय एकता और सरदार पटेल के संकल्प की विजयगाथा के रूप में याद करते हैं।