श्रीनगर स्थित प्रसिद्ध हजरतबल दरगाह इस समय एक नए विवाद का केंद्र बनी हुई है। दरगाह के भीतर हाल ही में बने गेस्ट हाउस की आधारशिला पर लगे राष्ट्रीय प्रतीक अशोक-चिह्न को कुछ असामाजिक तत्वों ने खंडित कर दिया। उनका तर्क था कि धार्मिक स्थल पर किसी भी मूर्तिमान प्रतीक की स्थापना इस्लामी उसूलों के खिलाफ है।
गंभीर धाराओं में केस दर्ज
बहरहाल अब मामला बढ़ने के बाद स्थानीय पुलिस ने इस मामले में गंभीर आपराधिक मामलों के तहत केस दर्ज किया है। श्रीनगर पुलिस ने एफआईआर नंबर 76/2025 दर्ज की है। यह केस भारतीय न्याय संहिता (BNS) की उन धाराओं में दर्ज हुआ है जो सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने और राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान करने से जुड़ी हैं। यानी अब दोषियों पर कड़ी कानूनी कार्रवाई तय है।
लेकिन सवाल यह है कि क्या राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर जायज़ ठहराया जा सकता है?
घटना कैसे हुई?
बीते शुक्रवार, जुमे की नमाज़ के बाद कुछ असामाजिक तत्वों ने दरगाह परिसर में उद्घाटन-पत्थर पर लगे अशोक-चिह्न को तोड़ दिया। स्थानीय विरोधियों का तर्क था कि “पवित्र स्थल पर किसी प्रतीक के सामने सिर झुकाना उनके मजहबी उसूलों के खिलाफ है।” लेकिन सवाल यह है कि क्या भारत का राष्ट्रीय चिह्न, जो संविधान और लोकतंत्र का प्रतीक है, को अपमानित करना किसी धर्म की स्वतंत्रता के नाम पर जायज़ ठहराया जा सकता है?
राष्ट्रीय प्रतीक का संविधान में उल्लेख
राष्ट्रीय प्रतीक (National Emblem) को नुक़सान पहुँचाना या उसका अपमान करना सीधा भारतीय संविधान में नहीं, बल्कि उससे जुड़े विशेष क़ानून "राजचिह्न और नाम (अनुचित प्रयोग की रोकथाम) अधिनियम, 1950" (Emblems and Names (Prevention of Improper Use) Act, 1950) और "राजचिह्न (अनुचित प्रयोग की रोकथाम) अधिनियम, 2005" (The State Emblem of India (Prohibition of Improper Use) Act, 2005) के अंतर्गत अपराध माना जाता है।
1. भारतीय संविधान में प्रावधान
अनुच्छेद 51A (a) : नागरिकों का मौलिक कर्तव्य है कि वे राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय प्रतीक और राष्ट्रीय गान का सम्मान करें।
यानी अशोक चिह्न को तोड़ना या अपमान करना संविधान द्वारा निर्धारित मौलिक कर्तव्य का उल्लंघन है।
2. राजचिह्न अधिनियम, 2005 के अनुसार सजा
Section 3 & 4 : राष्ट्रीय प्रतीक का अनुचित प्रयोग, क्षति पहुँचाना, तोड़ना या उसका अपमान करना प्रतिबंधित है।
सजा : 6 महीने तक की कैद, या 5000 रुपये तक का जुर्माना, या दोनों।
3. भारतीय दंड संहिता (अब BNS) में प्रावधान
भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) में भी "राष्ट्रीय प्रतीक और ध्वज के अपमान" को गंभीर अपराध माना गया है।
इसमें सार्वजनिक संपत्ति को नुक़सान पहुँचाना और राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान करने वालों पर कठोर दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान है।
अर्थात् अशोक चिह्न या राष्ट्रीय प्रतीक को तोड़ना संविधान के अनुच्छेद 51A का उल्लंघन, और राजचिह्न अधिनियम, 2005 व BNS के तहत क़ानूनन दंडनीय अपराध है। दोषी को कैद और जुर्माना दोनों हो सकता है।
जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष डॉ. दरख्शां अंद्राबी ने इसे सख्त शब्दों में लताड़ा। उनका कहना था – “राष्ट्रीय चिन्ह को तोड़ना किसी आतंकवादी हमले से कम नहीं है। यह दरअसल देश की संप्रभुता और गरिमा पर हमला है। दोषियों की पहचान कर उनके खिलाफ न सिर्फ एफआईआर दर्ज होगी, बल्कि उन्हें आजीवन दरगाह में प्रवेश से वंचित किया जाएगा।”
दरअसल, कश्मीर में कट्टरपंथ की जड़ें कितनी गहरी हैं, यह घटना एक बार फिर उजागर करती है। जो प्रतीक संसद से लेकर सरकारी इमारतों तक भारत की एकता का प्रतिनिधित्व करता है, वही प्रतीक अगर दरगाह परिसर में स्वीकार्य नहीं है, तो यह सोचना पड़ेगा कि आखिर इस असहिष्णुता को बढ़ावा कौन दे रहा है।
यह सिर्फ अशोक चिह्न का अपमान नहीं, बल्कि भारत के लोकतंत्र, संविधान और राष्ट्रीय स्वाभिमान पर प्रहार है।