जम्मू-कश्मीर की राजनीति एक बार फिर विवादों में है। डोडा विधानसभा क्षेत्र (Doda-52) से विधायक मेहराज दीन मलिक को सोमवार (8 सितंबर 2025) को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। बताया जा रहा है कि हिरासत के दौरान पुलिस और विधायक के बीच धक्का-मुक्की भी हुई, जिससे माहौल तनावपूर्ण बन गया।
विवाद की जड़ – DC के खिलाफ अभद्र भाषा
सूत्रों के अनुसार, पूरा मामला तब भड़का जब विधायक मेहराज मलिक ने जिला उपायुक्त (DC) के खिलाफ कथित रूप से अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया। इसके बाद जिला प्रशासन के अधिकारी और कर्मचारी आक्रोशित होकर हड़ताल पर चले गए। स्थिति बिगड़ती देख पुलिस ने तुरंत कार्रवाई की और विधायक को हिरासत में ले लिया।
प्रशासन ने जारी किया आदेश
जिला उपायुक्त (डीसी) डोडा, हरविंदर सिंह (IAS) की ओर से जारी आधिकारिक दस्तावेज़ के मुताबिक, मेहराज मलिक को जम्मू-कश्मीर पब्लिक सेफ़्टी एक्ट (PSA), 1978 के तहत बुक किया गया है।
PSA लगाने की वजह
आदेश में साफ कहा गया है कि विधायक की गतिविधियाँ लोक-व्यवस्था बनाए रखने के लिए हानिकारक पाई गईं। यदि उनकी गतिविधियाँ जारी रहतीं तो शांति, क़ानून-व्यवस्था और जिला की स्थिरता पर गंभीर ख़तरा बनता।
रिपोर्ट्स और हालात का मूल्यांकन करने के बाद पाया गया कि उनके खिलाफ निवारक हिरासत (preventive detention) ज़रूरी है। इसी के तहत PSA के प्रावधान लागू करते हुए उन्हें हिरासत में लिया गया।
फिलहाल कहाँ हैं विधायक?
विधायक मेहराज मलिक को हिरासत में लेने के बाद डोडा के फैमिली डाक बंगले में रखा गया है। पुलिस निगरानी में उनसे पूछताछ की जा रही है।
यह पहला मौका नहीं है जब जम्मू-कश्मीर में नेताओं और प्रशासन के बीच टकराव सुर्खियों में आया हो। लेकिन यह घटना इसलिए अहम है क्योंकि एक वर्तमान विधायक पर PSA जैसा कठोर कानून लगाया गया है। यह दर्शाता है कि प्रशासन इस पूरे मामले को सिर्फ़ “राजनीतिक विवाद” नहीं बल्कि क़ानून-व्यवस्था की गंभीर चुनौती मान रहा है।
विपक्ष और जन प्रतिक्रिया
स्थानीय स्तर पर यह कार्रवाई बड़े राजनीतिक विवाद का रूप ले सकती है। समर्थक इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई बता सकते हैं। वहीं प्रशासन का कहना है कि यह कदम शांति और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक था।
मेहराज मलिक की गिरफ्तारी और उन पर PSA का लगाया जाना आने वाले समय में जम्मू-कश्मीर की राजनीति को और गरमा देगा। यह सिर्फ़ एक विधायक और DC के बीच टकराव का मामला नहीं रहा, बल्कि अब यह कानून बनाम राजनीति की लड़ाई का प्रतीक बन गया है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि अदालत और विधानसभा में इस मुद्दे को किस तरह उठाया जाता है।