16 जून, 2017, साउथ कश्मीर के युवाओं को देशभक्ति की प्रेरणा देता रहेगा देश का बेटा और कश्मीर की शान फिरोज़ अहमद डार का बलिदान

JKN-HND    16-Jun-2019
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आतंक प्रभावित पुलवामा के अवंतीपोरा में जन्में फिरोज़ अहमद डार एक ऐसे किरदार हैं, जिसकी शहादत साउथ कश्मीर के युवाओं को हमेशा प्रेरणा देती रहेगी। वो प्रेरणा जो कभी घाटी में आतंकवाद को जीतने नहीं देगी। बचपन में आतंकवाद की सच्चाई पहचान फ़िरोज़ ने बचपन में ही तय कर लिया था, कि वो खूब पढ़ेगा। फ़िरोज़ ने यूनिवर्सिटी ऑफ महाराष्ट्र से जूलॉजी में मास्टर्स की डिग्री हासिल की, फिर उसके बाद एम-फिल की भी डिग्री हासिल की। फ़िरोज़ पीएचडी भी करना चाहता था, लेकिन उसे कश्मीर वापिस घर लौटना पड़ा। यहां उसने 2010 में जम्मू कश्मीर पुलिस में सब-इंस्पेक्टर के तौर पर जॉइन किया। अगले ही साल 2011 में फ़िरोज़ ने मुबीना अख़्तर से शादी कर ली। अगले कुछ सालों में फ़िरोज़ को 2 बेटियां हुईं, अदा और सिमरन।
लेकिन इस बीच फ़िरोज़ ने अपनी ड्यूटी को जी जान से निभाते हुए साउथ कश्मीर से आतंक की सफाई का अभियान जारी रखा। वो एक तेज़ तर्रार अफसर थे। फ़िरोज़ ने कई एनकाउंटर ऑपरेशन को लीड किया। 2017 में फ़िरोज़ की टीम ने सेना के साथ मिलकर लश्कर ए तैयबा के कमांडर जुनैद मट्टू और उसके सहयोगी मुज़म्मिल को एनकाउंटर में मार गिराया।
 
 

 
 फिरोज अहमद डार की 5 साल की बेटी अदा
 
फ़िरोज़ आतंकियों के लगातार खतरा बन हुए थे। 16 जून 2017 को जब वो पुलिस जीप में अपने 5 साथियों के साथ अनंतनाग ज़िले के थजीवरा, अच्छबल के पास पेट्रोलिंग कर रहे थे। लश्कर ए तैयब्बा के आतंकियों ने घात लगाकर वाहन पर हमला किया। लगातार गोलीबारी में फ़िरोज़ को संभलने का मौका ही नहीं मिला और फ़िरोज़ अपने 5 साथी पुलिसकर्मियों के साथ शहीद हो गए। आंतकियों ने उनके हथियार लूटने से पहले फ़िरोज़ का चेहरा बिगाड़ने की कोशिश भी की।
 
 
इस तरह 32 साल की उम्र में SHO फ़िरोज़ अहमद डार ने शहादत हासिल कर ली। इस घटना ने न सिर्फ जम्मू कश्मीर को बल्कि पूरे देश को झकझोर दिया। तत्कालीन केंद्रीय रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने इस हमले की जोरदार निंदा की और इस घटना के ज़िम्मेदार आतंकियों को जल्द ठिकाने लगाने के आदेश दिए।
 
 
17 जून को जब फ़िरोज़ को अंतिम विदाई दी गयी तो फ़िरोज़ की एक कविता जो उसने कईं साल पहले 18 जनवरी 2013 को फेसबुक पर पोस्ट की थी, सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुई। वो कविता कुछ इस तरह थी-
 

"क्या आपने कभी थोड़ी देर रुककर अपने आप से पूछा कि मेरी कब्र में पहली रात में मेरे साथ क्या होने वाला है। उस पल के बारे में सोचिए, आपके शव को धोया जा रहा है और आप कब्र के लिए तैयार हैं।

उस दिन के बारे में सोचिए जब लोग आपके शव को कब्र पर ले जाएंगे और आपके परिवार के सदस्य रो रहे होंगे। उस पल के बारे में सोचिए आपको जब क्रब में रखा जाएगा। 


"जरा सोचिए... अपनी कब्र में खुद को, उस घने अंधेरे में गड्ढे के अंदर... अकेला।" उस अंधेरे में आप मदद के लिए चिल्लाएंगे लेकिन... यह काफी संकीर्ण है आपकी हड्डियों को कुचल दिया जाता है। आपको अपनी प्रार्थनाएं याद आती है, आप संगीत को याद करते हैं। आप हिजाब ना पहनने पर अफसोस जताते हैं। अल्लाह के आदेशों की अनदेखी करने पर आप पछतावा करेंगे लेकिन बच नहीं सकेंगे। आप अपने कर्मों के साथ अकेले रहेंगे। ना पैसा ना आभूषण, सिर्फ कर्म... अल्लाह सभी को कब्र की यातनाओं से बचाता है। आमीन।"
 
टीम जेके नाउ, फ़िरोज़ अहमद डार की शहादत को सलाम करती है।