#RememberingOurKargilHeroes ; परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज कुमार पांडे की शौर्यगाथा ; जिन्होंने दुश्मनों के 4 बंकरों को ध्वस्त कर खालोबार चोटी पर फहराया तिरंगा
   03-जुलाई-2023
 
Captain Manoj Pandey Kargil story
 
 
 
 'मेरे रास्ते में मौत आई तो उसे भी मार दूंगा' : कैप्टन मनोज पाण्डेय 
 
 
कारगिल युद्ध (Kargil War) के दौरान भारतीय सेना ने अपने असीम साहस, वीरता और धैर्य का परिचय दिया था। इस युद्ध में अपने अदम्य साहस और नेतृत्व के लिए कैप्टन मनोज कुमार पांडे (Captain Manoj Kumar Pandey) को मरणोपरांत सर्वोच्च सैन्य सम्मान 'परमवीर चक्र' से सम्मानित गया था। गौरवशाली गोरखा राइफल के कैप्टन मनोज पांडे 3 जुलाई 1999 को ही कारगिल युद्ध में दुश्मनों से लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे। दुश्मन की गोलियां खाकर बलिदान होने से पहले कैप्टन पांडे ने खालोबार चोटी पर तिरंगा फहरा कर कारगिल युद्ध का रुख पलट दिया।
 
 
 
Captain Manoj Pandey Family
 
 
 
जम्मू कश्मीर में पहली तैनाती 
 
 
कैप्टन मनोज पांडेय का जन्म 25 जून 1975 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले के रुधा गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम गोपीचन्द्र पांडेय और मां का नाम मोहिनी था, लखनऊ सैनिक स्कूल में शिक्षा पाने के बाद मनोज पांडे ने पुणे के पास खड़कवासला स्थित 'राष्ट्रीय रक्षा अकादमी' में प्रशिक्षण लिया और 11 गोरखा रायफल्स रेजिमेंट की पहली वाहनी के अधिकारी बने।
 
मनोज पांडे की पहली तैनाती जम्मू कश्मीर में हुई और सियाचिन में भी उन्होंने अपनी सेवाएं दी। जब कारगिल युद्ध छिड़ा तो वे सियाचिन से लौट रहे थे। इससे पहले उन्हें जो भी कार्य सौंपा गया था उन्होंने उन सभी को बहुत शिद्दत से पूरा किया था। वे हमेशा आगे बढ़ कर अपने सैनिकों के नेतृत्व करने वालों में से एक रहे। शुरुआत में उन्होंने कुकरथांग, जूबरटॉप जैस चोटियों को दुश्मन के कब्जे से मुक्त कराने का सफलता पूर्वक किया।
 
 
 
Khalobar top kargil war 1948
 
 खालोबार टॉप
 
 
खालोबार चोटी को मुक्त कराने की जिम्मेदारी  
 
 
इसके बाद उन्हें खालोबार चोटी को पाकिस्तानी सैनिकों से मुक्त कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई। इस पूरे मिशन का नेतृत्व कर्नल ललित राय कर रहे थे। कर्नल ललित राय ने कारगिल युद्ध का जिक्र करते हुए बताया था कि युद्ध के दौरान 'खालोबार टॉप' रणनीतिक नजरिए से बेहद महत्वपूर्ण था। भारतीय सेना जानती थी कि इस पर कब्जा करने से पाकिस्तानी सेना के दूसरे ठिकाने खुद ब खुद कमजोर हो जाएंगे और उन्हें रसद पहुंचाने और वापसी में परेशानी हो जाएगी।
 
खालोबार चोटी पर हमले के लिए गोरखा राइफल्स की दो कंपनियों को चुना गया। कर्नल राय भी इन टुकड़ियों के साथ थे जिसमें कैप्टन मनोज पांडे भी शामिल थे। कैप्टन मनोज अपनी टुकड़ी के साथ मिशन को पूरा करने के लिए अभी थोड़े ऊपर पहुंचे ही थे कि चोटी पर बैठे पाकिस्तानी सैनिकों ने गोलीबारी करना शुरू कर दिया। दुश्मनों की गोलीबारी के कारण सभी भारतीय सैनिकों को इधर उधर बिखरना पड़ा। उस समय करीब 60 से 70 मशीन गनें गोलियां बरसा रहीं थी। गोलियों के साथ भारतीय सैनिकों पर गोले भी बरस रहे थे।
 
 Captain Manoj Pandey
 
 
दुश्मनों के 6 बंकरों को ध्वस्त करने का मिला आदेश
 
 
ऊपर से बहुत ही घातक गोलीबारी के बीच कर्नल ललित राय दुविधा में थे। ऐसे हालात में ऊपर यूं ही चढ़ते रहना जान खोने के ही बराबर था। ऐसे में कर्नल राय के पास सबसे नजदीक कैप्टन मनोज पांडे थे। उन्होंने मनोज से कहा कि तुम अपनी प्लाटून को ले जाओ, ऊपर 4 बंकर दिखाई दे रहे हैं जिन पर धावा बोलकर उन्हें खत्म करना है।
 
 
कैप्टन पांडे ने आदेश मिलने के तुरंत बाद बिना देरी करते हुए ऊपर चढ़ने लगे। मनोज ने बर्फीली ठंडी रात में ऊपर चढ़ कर रिपोर्ट दी की वहां 4 नहीं बल्कि दुश्मनों के कुल 6 बंकर हैं। इनमें से 2 बंकर कुछ दूर थे जिन्हें खत्म करने के लिए मनोज ने हवलदार दीवान को भेजा जिन्होंने दोनों बंकर नष्ट तो कर दिया पर वे खुद को दुश्मन की गोली से नहीं बचा सके।
 
 
Khalobar Kargil 1999
 
 
4 में से 3 बंकरों को किया ध्वस्त
 
 
बाकी बंकरों के लिए मनोज रेंगते हुए अपने साथियों के साथ आगे बढ़े। मनोज ने बंकरों तक पहुंचकर उनके लूपहोल में ग्रेनेड डाल कर बंकरों को उड़ाया लेकिन चौथे बंकर में ग्रेनेड फेंकते समय उन्हें गोलियां लग गई और वे खून से लथपथ हो गए। कुछ गोलियां उनके माथे पर भी लगीं लेकिन उन्होंने गिरते हुए कहा 'ना छोड़नूं' और वे जमीन पर गिर गए। लेकिन जमीन पर गिरने से पहले उन्होंने चौथे बंकर में भी ग्रेनेड फेंक दिया था, जिसके फटने से बच कर भागने वाले पाकिस्तानी सैनिक भी ढेर हो गए। इस तरह कैप्टन मनोज पांडे ने युद्ध भूमि में अपनी वीरता का परिचय देते हुए पाकिस्तान के 4 बंकरों को ध्वस्त कर भारतीय तिरंगा फहराया। कैप्टन मनोज पांडे की इस वीरता से भारतीय सैनिकों के आगे बढ़ने का रास्ता साफ़ हुआ जिससे उन्हें दुश्मनों से अन्य पोजीशन को मुक्त कराने में मदद मिली। 
 
 
 
Capt Manoj Pandey PVC
 
 
राष्ट्रपति के आर नारायणन से परमवीर चक्र पुरस्कार ग्रहण करते कैप्टन मनोज कुमार पांडे के पिता
 
 
मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित
 
 
कैप्टन मनोज पांडे महज 24 साल 7 दिन की उम्र में ही अपने देश के लिए बलिदान की अनोखी कहानी लिख गए। कैप्टन पांडे के कारनामे ने युद्ध में भारत का पलड़ा भारी कर दिया जिसके बाद भारतीय सेना ने पीछे हटकर नहीं देखा और अंततः कारगिल युद्ध में भारत की ही जीत हुई। कैप्टन मनोज पांडे को युद्ध के दौरान असीम शौर्य, वीरता और उत्तम युद्ध कौशल के लिए मरणोपरांत 26 जनवरी 2000 को तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायणन द्वारा परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। इस वीरता पुरष्कार को कैप्टन मनोज पांडे के पिता गोपी चंद पांडे ने ग्रहण किया। कर्नल ललित राय इस बारे में चर्चा करते हुए यह बताते हैं कि वो अपने साथ दो कंपनियों को ले कर ऊपर गए थे। जब उन्होंने खालूबार पर भारतीय झंडा फहराया तो उस समय उनके पास सिर्फ़ 8 जवान बचे थे। बाकी लोग या तो मारे गए थे, या घायल हो गए थे। उनके बलिदान को पूरा देश सदैव याद करेगा।